पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/५१७

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१६ पढ़] की पुस्तक । से बांधेगे और उन के हाथ में सपिगे पर निश्चय हम तुझे मार न डालेगे फिर उन्हों ने उसे दो नई डोरी से बांधा और पहाड़ी पर से उतार लाये ॥ १४। जब वुह लही में पहुंचा तब फिलमती उस पर ललकारे उस समय परमेश्वर का आत्मा सामर्थ्य के साथ उस पर पड़ा और उस की वाह पर की डोरी जले सन की नाई हो गई और उस के हाथों के बंधन खल गये। १५ । नब उप्त ने गदहे को एक नई जबड़े को हड़ी पाई और हाथ बढ़ाके उसे लिया और उस ने उस्मे एक सहस्र मनश्य मार १६। और शम्सून बोला कि एक गदहे की जबड़े की हड्डी से ढेर पर ढेर मैं ने एक गदहे की जबड़े की हड्डी से एक सहस्र पुरुष १७। और ऐसा हुआ कि इतना कहके जबड़े की हड्डी का अपने हाथ से फेंक दिया और उस स्थान का नाम रामतलही डाले मारे। रकखा। १८। और वुह निपट पियासा हुआ तब वह परमेश्वर की विनती करके बोला कि त ने अपने दास के हाथ से ऐसा बड़ा बचाव दिया और अब क्या मैं पियासा मरके अखतनों के हाथ में पड़े। परमेश्वर ने एक गड़हा लही में खोदा और वहां से पानी निकला और उम ने उसे पीया तब उस के जी में जी आया और वुह फिर जीया इस लिये उम् ने उम का नाम एवंक का कारखा जो आज ला लही में है। २० । और उम ने फिलिसनियों के समय में बीस बरस तो इसराएल का न्याय किया। १६ सोलहवां पर्च। त •ब शम्सून अञ्जः को गया और वहां एक गणिका स्त्री देखो और २। अन्जियों से कहा गया कि शम्मून यहां आया है सो उन्हों ने उसे घेर लिया और भारी रात नगर के फाटक पर उस की घान में लगे रहे पर रात भर यह कहके चुप चाप रहे कि जब बिहान होगा जब हम उसे मार लेंगे। ३। और शम्सून प्राधी रात लो पड़ा रहा और आधी रात को उठा और उम ने नगर के फाटकों के दुआरों को चार दो खंभों को अपने कांधे पर धरके उस पहाड़ी की उस पास गया।