पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/५२

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[२४ पर्व ४२ उत्पत्ति खाके बोला कि मैं तेरे बंश को यह देश दे ऊंगा बही तेरे आगे अपना दूत भेजेगा और वहीं से तू मेरे बेटे के लिये पत्नी लेना ॥ ८। और यदि बुह स्त्री नेरे साथ आने को न चाहे तो तू मेरी इस किरिया से छूट जायगा केवल मेरे बेटे को उधर फिर मत ले जा॥ ८। उस सेवक ने अपना हाथ अपने खामी अविरहाम की जांच तले रकहा और उस बात के विषय में उस् के आगे किरिया खाई । १० । और उस सेवक ने अपने खामी के ऊंटों में से दस ऊंट लिये और चल निकला क्योंकि उस के खामी की सारी संपत्ति उस के हाथ में थी से। वुह उठा और अरामनहरी में नहर के नगर को गया। ११। और उस ने अपने ऊंटों को नगर के बाहर पानी के कर के पाम सांझ के समय में जब कि स्त्रियां पानी भरने को बाहर जाती है बैठाया ॥ १२। और कहा कि हे परमेश्वर मेरे खामी अबिरहाम के ईश्वर में आप की बिनती करता हूं आज मेरा कार्य सिद्ध कीजिये और मेरे खामी अबिरहाम पर दया कीजिये ॥ १३ । देख मैं पानी के कूएं पर खड़ा हूं और नगर के पुरुषां की बेटियां पानी भरने श्राती हैं । १४ । ऐसा होवे कि चुह कन्या जिसे मैं कहूं कि अपना घड़ा उतार जिसने मैं पीज और बुह कहे कि पी और मैं तेरे ऊंटों को भी पिलाऊंगी वही हो जिसे तू ने अपने दास इज़हाक के लिये ठहराया है और इसी से मैं जानूंगा कि तू ने मेरे खानी पर दया किई है॥ १५ । इननी बात समाप्त न करते ही ऐसा हुआ कि देखो रिबकः जो अविरहाम के भाई नहर की पत्नी मिलकः के बेटे बनूएल से उत्पन्न हुई थी अपना घड़ा अपने कांधे पर धरे हुए बाहर निकली। १६। और वुह कन्या रूमवती और कुमारी थी जिसने पुरुष अज्ञान था उस कुएं पर गई और अपना घड़ा भरके ऊपर आई। १७ । वह सेवक उस की भेंट को दौड़ा और बोला मैं तेरी बिनती करता हूँ अपने घड़े से थोड़ा पानी पिला ॥ १८। वुह बोली कि पीजिये मेरे प्रभ और उस ने फुरती करके घड़ा हाथ पर उतारके उसे पिलाया । १६ । जब उसे पिला चुकी तो बोली मैं तेरे ऊंटों के लिये भी जबलों वे जल से हल हो खींचती जाऊंगी ॥ २० । और उस ने फुरती करके अपना घड़ा कठरे में उंडेला और फिर कुएं पर भरने को दौड़ी और