पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/५२२

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[१८ पर्व ५१४ न्यायियों आये तो वहां उतरे। ३। जब वे मौका के घर के पास आये तब उस सावी तरुण का शब्द पहिचाना और उधर मुड़ के उसे कहा कि तुझे यहां कौन लाया तू यहाँ क्या करना है और तेरा यहां क्या काम ॥ ४ । उस ने उन्हें कहा कि मौका मुझ से यो यो व्यवहार करता है और मुझे बनौ में रकवा है और मैं उस का पुरोहित हूं। ५ । नब उन्हों ने उसे कहा कि ईश्वर से मंत्र लीजिये जिमतें हम जाने कि हमारे कार्य सिद्ध होंगे अथवा नहीं ॥ ६ । और पुरोहित ने उन्हें कहा कि तुम्हारी यात्रा परमेम्वर के आगे है से कुशल से जायो। । तब वे पांच जन चल निकले और लेस को आये और वहां के लोगां को देखा कि सैदानियों के समान निश्चित रहते हैं और देश में कोई लामी न था जो उन्हें किसी बात में लज्जित करता और वे सैदानियों से दूर थे और किसी से कुछ कार्य न रखते थे ॥ ८। तब वे अपने भाई कने सुरक्षा और इसतात को आये और उन के भाइयों ने पूछा कि क्या कहते हो। । और वे बोले कि उठो हम उन पर चढ़ जायें क्योंकि हम ने उस भूमि को देखा है जो बहुत अच्छी है और तुम चुपके हो उस भूमि में पैठके अधिकार लेने में आलस न करो ॥ १।। जब चलोगे तब निश्चित लोगों पर और बड़े देश में पहुंचागे क्योंकि ईम्पर ने उसे तुम्हारे हाथ में कर दिया है बुह एक देश है जिस में पृथिवी में की कोई बस्तु घटी नहीं है। १.१ । तब दान के घराने में से सुरअः और इसमाल के छः सौ पुरुष युद्ध के हथियार बांधे हुए वहां से चले ॥ १२ । और वे चढ़ गये और यहूदाह के करयतभरीम में डेरा किया इस लिये अाज के दिन लो उस स्थान का नाम उन्हों ने महानेह दान रक्खा चौर देखा वुह करयत- अरीम के पौके है। १३। और घहा से चल के इफरायम पहाड़ को पहुंचे और मौका के घर में आये ॥ ९४ । तब उन पांच पुरुषों ने जो लैस के देश का भेद लेने को गये थे अपने भाइयों से उत्तर देके कहा कि गुरुम जानते हो कि इन घरों में अफ़द और तराफीम और एक खादी हुई और एक ढाली हुई मूर्ति हैं सो अब सोचा कि क्या करोगे॥ ९५ । तब वे उधर फिरे और मौका के घर में उस लाबी तरुण के स्थान में प्रवेश किया और उसमे कुशल पूछा ॥ १६ । और वे छः मा जो दान के संतान प्राके