पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/५२५

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२९ पन्चे कौ पुस्तक । और उस का सेवक बिदा होने को उठे फिर कन्या के पिता ने उसे कहा कि देख दिन ठल चन्ना है और सांझ पहुंची है अब रात भर ठहर जा देख दिन समाप्त हो चला है अब रह जा जिसनं तेरा मन मगन हो जाये और कल तड़के डेरे जाने को मिधार ॥ १.। परंतु वुह जन उम रात को न रहा पर उठके विदा हुश्रा और यबम के मन्मुख पाया जिम का दूसरा नाम यरूसलम है और उस के संग काठी बांधे हुए दो गदहे और उस की दासी भी उम्र के साथ थी। ११ । जब वे बबूम पास पहुंचे तब दिन बहुत ढल गया इतने में सेवक ने अपने स्वामी से कहा कि मैं श्राप की बिनती करता हूं आइये यसियों के इम नगर में मुड़ें और इसी में टिक।१२। सब उम के खामी ने उसे कहा कि हम उपरी नगरों में जो इसराएम्न के संसानो का नहीं है न टिकेंगे परंत जिबअः को पार जायेंगे। १३। और अपने सेवक में कहा कि चल दून स्थानों में से जिवनः अथवा रामः में रात भर टिक। १४। और उन के जाते जाते विनयमीन के जिबः के पास सूर्य अस्त हुश्रा॥ १५ । और वे उधर फिरे कि जिबः में टिके और नगर के एक मार्ग में उतर के बैठ गये क्योंकि कोई ऐसा न था जो उन्हें अपने घर से जाके टिकावे। १६ । और देखें। कि एक बल खेत पर से काम करके सांझ को वहां आया बुह भी इफ़रायम पहाड़ का था जो जिबः में आके बसा था परंतु उस स्थान के बासी बिनयमीनो थे॥ १७। जब उम ने आंखें उठाई तब देखा कि एक पथिक नगर के मार्ग पर है उस हव ने उसे कहा कि तू किधर जाता है और कहाँ से आता है। १८। तब उस ने उसे कहा कि हम यहूदाह तल हम से इफरायम के पहाड़ की ओर जाते हैं जहां के हैं और हम यहदाह वैतलहम को गये थे परंतु अब परमेश्वर के मंदिर को जाते हैं यहां कोई ऐसा मनुष्य नहीं जो हमें अपने घर उतारे। १८। तथापि हमारे साथ गदहे के लिये अन्न भूमा है और मेरे और तेरी दासौ के लिये और इस तरुण के लिये जो मेरा सेवक है रोटी और मदिरा है किसी वस्तु की घटी नहीं है। की घटी नहीं है। २०। और उम तृन ने कहा कि तेरा कल्याण हेावे तिस पर भी तेरा अावश्यक मुझ पर होवे केवल मार्ग में रात को मत रिको॥ २१ । सेो वुद्ध उसे अपने घर ले गया और उस के