पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/५३

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२४ प] की पुस्तक। ४३ उस के सब ऊंटों के लिये खींचा। २१। और वुह पुरुष प्राश्चर्य करके देख रहा कि परगेश्वर ने मेरी यात्रा सफल किई है कि नहीं। २२। और यो हुआ कि जब ऊंट पौ चुके तो उस पुरुष ने आधे शैकल भर सोने की एक नय और दस भर सोने के दो खड़वे उन के हाथों के लिये निकाले ॥ २३ । और कहा कि तू किनकी बेटी है मुझे बता तेरे पिता के घर में हमारे लिये रात भर टिकने का स्थान है। २४ । और उस ने उसे कहा कि मैं मिनकः के बेटे बतूएल की कन्या हं जिसे वुह नहर के लिये जनी॥ २५ । और उस ने उसे कहा कि हमारे यहां वास चारा भी बहुत है और रात भर टिकने का स्थान ॥ २६ । तब उम पुरुष ने अपना मिर झकाया और परमेश्वर की दंडबत किई॥ २७॥ और कहा कि परमेश्वर मेरे खामी अबिरहाम का ईश्वर धन्य है जिस ने मेरे खामी को अपनी दया और अपनी सच्चाई बिना न छोड़ा मार्ग में परमेश्वर ने मेरे खामी के भाइयों के घर को और मेरी अगुआई किई ॥ २८। तब बुह लड़की दौड़ी और अपनी माता के वर में ये बातें कहीं॥ २६ । और लावन नाम रिवका का एक भाई था जो बाहर कूरं पर उस मनुष्य कने दौड़ा॥ ३० । और या हुआ कि जब उस ने वुह नथ और खड्वे अपनी बहिन के हाथों में देखे और जब उस ने अपनी बहिन रिबकः से ये बातें कहते सुनी कि दूस मनुष्य ने मुझे यां कहा वुह उस पुरुष पास आया और क्या देखता है कि वह जंटों के पाम कर पर खड़ा है। ३१। और कहा कि हे ईश्रर के आशीषित तू भीतर आ तू किस लिये बाहर खड़ा है क्योंकि मैं ने तेरे और तेरे ऊंटों के लिये वर मिश्र किया है ॥ ३२। और वुह पुरुष घर में आया और उम ने अपने ऊंटों के पलान खोने और कंटों के लिये घास चारा और उसके और लोगों के जो उम के माथ घे चरण धोने को जल दिया ॥ ३३ । और भोजन उस के आगे रक्खा गया पर वुह बोला कि जब लो मैं अपना संदेश न पहुंचाऊं मैं न खाऊंगा बोला कहिये ॥ ३४। तब उस ने कहा कि मैं अबिरहाम का सेवक हूं। ३५ । और परमेश्वर ने मेरे खामी को बहुत सा बर दिया है और वह महान हुआ है और उस ने उसे मुंड और ढार और सोना चांदी और