पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/५३४

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रूत [१ पब किया वैसे ही परमेश्वर तुम पर अनुग्रह करे॥ । परमेश्वर ऐसा करे कि अपने अपने पति के घर में विश्राम पाओ तब उसने उन्हें चूमा और उन्हों ने चिक्षा के बिलाप किया। १.। फिर उन्होंने उसे कहा कि हम तो निश्चय तेरे साथ तेरे लोगों में फिर जायेंगे। १९ । और नमी बोली मेरी बेटिया फिर जाओ मेरे साथ किस लिये जायोगी क्या मेरी कोख में और बेटे हैं कि तुम्हारे पति होयें ॥ १२ । मेरी बेटियो फिर जारकांकि पति करने को मैं अति राव हं यदि में कहो कि मेरी अाशा है और आज रात पति करूं और बेटे जनं। १३ । तो क्या तुम उन के सयाने होने ले आशा रखती और पति करने से उन के लिये टहरतौ नहीं मेरी बेटिया मैं तुम्हारे लिये निपट दुःखी हूं क्योंकि परमेश्वर का हाथ मेरे विरोध पर निकला॥ १।। तव वे फिर चिल्ला के रोई और उरफा ने अपनी मास का चूमा निया परंतु रूत अपनी सास से लपटी रही। १५ । नब बुह बोली कि देख तेरे भाई को पत्नी अपने लोगों और अपने देवता कने फिर गई त भी अपने भाई की पत्नी के पोके फिर जा॥ १६ । पर रूत बोली मुझे श्राप से छोड़ के फिर जाने को मत मना क्योंकि जिधर तू जायगी में भी जाऊंगी और जहां तू रहेगी रहंगी तेरे लेग मेरे लोग और तेरा ईश्वर मेरा ईश्वर॥ १७। जहां - मरेगी मैं मरूंगी और गाड़ी जाऊंगी ईश्वर भुझ से ऐसा ही करे और उस्मे अधिक यदि केवल मृत्यु मुझे तुझ से अलग करे॥ १८। जब उस ने देखा कि उस का मन उस के साथ जाने पर दृढ़ है नब बुह चुप हो रही । १६ । सेो वे दोनों जाने जाते बैतल हम में आई और यों हुआ कि जब बैतलहम में पहुंची तो उन के विषय में सारे नगर में धूम मची और लोग बोले कि क्या यह नअमी है ।। २० । उस ने उन्हें कहा कि मुझे नअमी मन कहो परंतु मारः कहा क्योंकि सबै शक्तिमान ने अति कड़वाहट से मुझ से व्यवहार किया है॥ २१। मैं भरी पूरौ निकल गई और परमेश्वर मुझे छही फेर लाया मुझे नमी क्यों कहते हो देखते हो कि परमेश्वर ने मुझ पर साक्षी दिई है और सबै सामर्थी ने मुझे दुःख दिया है ॥ २२ । सो नअमी अपनी बहू मात्रबी रूत समेत मोअव के देश से फिर आई और नव की करनी के श्रारंभ में वैतलहम में पहुंची।