पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/५३५

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की पुस्तक। २ दूसरा पर्च।। कन्या है। पर नमी के पति का एक कुटुम्ब था जो इलीमनिक के घराने में बड़ा धनी था जिस का नाम बोअाज था। २। और मोबी रूत ने मनमी से कहा कि मझे उस के खेत में जो मझ पर कृपा करे अन्न बौने को जाने दीजिये बुह उस से बोली कि मेरी बेटी जा॥ ३ । बुह गई और सबैयों के पौके पीछे खेत में बौने लगी संयोग से बुह इलीमलिक के कुटुम्ब बाबाज़ के खेत में गई। ४ । और देखो कि बोआज बैतलहम में से आ गया और लवैयों से बोला कि परमेश्वर तुम्हारे साथ चे उत्तर दे के बोले कि परमेश्वर आप को बढ़तौ देवे ॥ ५॥ फिर बाज ने अपने सेवक से जो लबैयों पर था मूछा कि यह किसकी ६। तब जो सेवक स्तवैयों पर था से उत्तर दे के बोला कि यह माबी कन्या है जो मोय के देश से निकल के नमी के साथ फिर श्राई॥ ७॥ और वह बोली मुझे लवैयों के पीछे पीछे गट्ठों के बीच बीच में बौने दीजिये सो बुद्ध आई और बिहान से अब लो बनी रही और तनिक घर में ठहरी। ८ तव बोआज ने रूत को कहा कि हे बेटो क्या तू नहीं सुनती है तू दूसरे खेत में अन्न बौन्ने न जा और यहां से मत जा परंत मेरी कन्यों से पिलची रह ॥ तेरी आँखें उसो खेत पर होवें जो बे लवते हैं और उन के पौके पीछे चली जा का मैं ने तरुण को नहीं चिताया कि तुझे न छूचे और जब तू पियासी होय तो पात्रों में से जाके पीजो तरुणों ने खींचा है। १० । तब उम ने नह के बल भूमि पर झुक के दंडवत किई और बोली कि अाप की दृष्टि में किस कारण मैं ने अनुग्रह पाया कि आप मेरी सुधि लेते हैं यद्यपि परदेशिन है। ११। तब बोअाज ने उत्तर देके उसे कहा कि जो तू ने अपने पति के मरने के पौक्के अपनी सास से किया है रती रतो मुझ पर प्रगट हुआ है न ने अपने माता पिता को और अपनी जन्म भूमि को छोड़ा चौर दून लोगों में आई जिन्हें न प्रामे न जानती थी। १२। परमेश्वर तेरे कार्य का प्रतिफन्त देवे और परमेश्वर दूसराएत का ईश्वर जिम के डने के नौ चे भगेमा रखने आई है तुझे परिपूर्ण पन्नटा देवे॥ १३। तब