पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/५३६

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५२८ वुह बोली कि हे मेरे प्रभु श्राप की कृपा मुझ पर होवे क्योंकि आप ने मुझे शांति दिई है और इस लिये कि तू ने म्नेह से अपनी दासी से बातें किई यद्यपि मैं तेरी दासियों में से एक के समान नहीं॥ १४। फिर बोआज ने उसे कहा कि भोजन के समय में तू इधर प्रा और रोटी खा और कौर को सिरके में भार तब वह लवैयों के पीछे बैठ गई और उस ने उसे चबेना दिया और बुह खा के टप्प हुई और कुछ छोड़ दिया। १५। और जब वुह बौने को उठौ नब बाबाज़ ने अपने तरुणे को अाझा करके कहा कि उसे गट्ठांहीं के बीच में बौने दे और उसे लजित न करो। १६ । और जान बूझके उस के लिये मुट्ठी भर भर गिरा भी देश और छोड़ देवो जिमने वह बौने और उसे कोई न झिड़ के १७। सो बुह सांझ लो खेत में बौनती रही और जो कुछ उस ने बौना था सो झाड़ा बुह चार पसेरी से ऊपर हुआ॥ १८। सो बुह उसे उठा के नगर में गई और जो कुछ उस ने बीना था । उस को सास ने देखा और दृप्त होने के पीछे जो कुछ उस ने रख शेड़ा था से निकाल के अपनी सास को दिया ॥ १६ । फिर उसकी सास ने पका कि नू ने अाज कहां वीना है और कहां परिश्रम किया धन्य है वुह जिन ने तेरी सुधि लिई तब उस ने जिस के यहां परिश्रम किया था अपनी सास को बना के कहा कि जिस के यहां मैं ने अाज परिश्रम किया है उस का नाम बेबाज है। २.। तव नमो ने अपनी बहू से कहा कि उम परमेश्वर को धन्य है जिस ने जीवतों और मृतकों से अपनी अनुग्रह न उठाया और गमी ने उसे कहा कि वुह जन हमारा कुटुम्ब है हमारा एक समीपी कुटुम्ब ।। २१। और मोवी रूत वाली कि उस ने मुझे यह भी कहा कि जब लों मेरी समस्त लवनी न हो जाय तू मेरे तरुणां के पास पास रहियो। २२ । तब नअमौ ने अपनी बहू से कहा कि मेरी बेटी भला है कि तू उस की कन्यों के साथ साथ जाया करे जिसत्तं वे किसी दूसरे खेत में तुझे न पावें ॥ २३ । तो बुह जब और गोहं की लवनी के अंत्य लो बोाज़ की कन्यों के साथ पिलची रही और अपनी सास के साथ रहती थी।