पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/५८

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उत्पति और चतुर अहेरी था और यअकब सुधा मनुष्य तंबू में रहा करता था॥ २८ । और इजहाक एनो को थार करता था क्योंकि वुह उस के अहेर से खाता था परन्तु रिवका यअकब को चाहती थी॥ २६ । और यअकब ने लपसी पकाई, और एमो खेत से आया और वुह थक गया था॥ ३० । और एसी ने यअकब से कहा मैं तेरी बिनती करना हूं कि दूस लाल लाल में से मुझे खिला क्योंकि में मूर्छित हं इस लिये उस का नाम अहूम हुआ ॥ ३१ । तब यअकूब ने कहा कि आज अपना जना पद मेरे हाथ बेच ॥ ३२॥ तब एसो ने कहा देख मैं मरने पर हूं और इस जन्म पद से मुझे क्या लाभ होगा। ३३ । तव यत्रकूब ने कहा कि आज मुझ से किरिया खा उस ने उग्मे किरिया खाई और अपना जन्म पद यकब के हाथ बेचा ॥ ३४ । तब यअव ने रोटी और मसूर की दाल की लपसी दिई उस ने खाया और पीया और उठके चला गया यों एसी ने अपने जन्म पद की निंदा किई। २६ कब्बीसवां पर्छ । पर उस देश में पहिले अकाल को छोड़ जो अबिरहाम के दिनों में पड़ा था फिर अकाल पड़ा तब इजहाक अबिमलिक पास जो फिलस्तियों का राजा था जिरार को गया। २। और परमेश्वर ने उस पर प्रगट होके कहा मित्र को मत उतरजा जहां मैं तुझे कह' उम देश में निवास कर ॥ ३। तू इस देश में टिक और मैं तेरे माथ हाऊंगा और तुझे आशीष देऊंगा क्योंकि मैं तुझे और तेरे बंश को इन सारे देशों को देऊंगा और मैं उस किरिया को जो मैं ने तेरे पिता अबिरहाम से खाई है पूरी करूंगा ॥ ४। और मैं तेरे बंश को आकाश के नारों की नाई बढ़ाऊंगा और ये समस्त देश तेरे बंश को देऊंगा और एथिवी के सारे जातिगण तेरे वंश से आशीष पावेंगे। ५। इस लिये कि अबिरहाम ने मेरे शब्द को माना और मेरी आज्ञाओं और मेरी बातों और मेरी विधिन और मेरौ व्यवस्था को पालन किया। ६। सो इजहाक जिरार में रहा। ७। और वहां के वासियों ने उसे उस की पत्नी के विषय में पूछा तब बुह बोला कि