पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/५९८

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बुराई समाल [२५ पञ्च सुनिये ॥ २५ । मैं श्राप से विनती करती है कि मेरे प्रभु इस बुरे पुरुष की अर्थात् नवाल की चिंता न करिये क्योंकि जैसा उस का नाम वैसा ही बुह उस का नाम नवान्त और मूर्खता उस के साथ परंतु मैं जो तेरी दासी हं अपने मभ के तरूणां को जिन्हें श्राप ने भेजा था न देखा॥ २६ । से अव हे मेरे प्रभु परमेश्वर के जीवन से और आप के प्राण के जीवन से जैसा कि परमेश्वर ने आप को लोह बहाने से और अपने ही हाथ से प्रतिफल लेने से रोका है वैसा ही अब आप के शत्रु और वे जो मेरे प्रभु की बुराई चाहते हैं नवाल के समान होवें ॥ २७। अब यह भेंट आप की दासौ अपने प्रभु के आगे लाई है से उन तरुण को दिया जाय जो मेरे प्रभु के पश्चातगामी हैं । २८। और अब मैं श्राप को बिनतो करती हूं कि अपनी दामी का पाप क्षमा कीजिये क्योंकि निश्चय परमेश्वर मेरे प्रभु के लिये दृढ़ घर बनावेगा इस कारण कि मेरा प्रभु परमेश्वर की लड़ाइयां लड़ता है और आप के दिनों में आप में न पाई गई।२६। तथापि एक जम उठा है कि आप का पीछा करे और श्राप के मरण का गाहक हे वे परंतु मेरे प्रभु का प्राण श्राप के ईश्वर परमेश्वर के संम जीवन की देर में बांधा जायगा और तेरे शत्रुन के देसवांस से फेंके जायेंगे। ३०। और ऐसा होगा कि जब परमेश्वर अपने बचन के समान सब भन्लाई, गेरे प्रभु से कर चुके और आप को इसराएल पर आज्ञाकारी करे॥ ३१ । नत्र आप के लिये यह कुछ डगमगाने का अथवा मेरे प्रभु के मन की ठोकर का कारण न होगा कि श्राप ने अकारथ लोहू बहाया अथवा कि मेरे प्रभु ने अपना पलटा लिया परंतु जब परमेम्बर मेरे प्रभु से भलाई करे नब अपनी दासौ को स्मरण कीजियो ॥ ३२ । और दाजद ने अबिजैल से कहा कि परमेश्वर इसराएल का ईश्वर धन्य है जिस ने तुझे मेरो भेट के लिये आज के दिन भेजा है। ३३ । और तेरा मंत्र धन्य और धन्य है जिस ने मझे आज के दिन लोह से और अपने हाथ से पलटा लेने से रोक रखा है। ३४। क्योंकि परमेश्वर इसराएल के ईश्वर के जीवन से जिस ने तुझे दुःख देने से मुझ से अलग रक्खा और यदि तू शीघ्र न करती और मुझक पास चली न पानी तो निःसंदेह बिहान लो नवाल का एक भी पुरुष प्राण