पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/६१

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२७ पर्च] को पुस्तक। को पत्नी किया। ३५ । जो इजहाक चौर रिबका के लिये मन के कड़वाहट का कारण हुई। २७ सन्ताईसवां पर्ज। पर यों हुआ कि जय इज हाक बूढ़ा हुआ और उस की आंखें धुन्धला गई ऐमा किबुत्र देख न सता था तो उस ने अपने जेठे बेटे एसों को बुलाया और कहा कि हे मेरे बेटे वह बोला देखो यही हं। २। तब उस ने कहा कि देख मैं बढ़ा हूं और मैं अपने मरने का दिन नहीं जानता ॥ ३ । सो अब तू अपना हथियार औरर तरकम और अपना धन ले और बन को जार मेरे लिये मृग मांस अहेर कर ॥ ४। और मेरी रुचि के समान वादित भोजन पका के मेरे पास ला जिसने खाऊं और अपने मरने के धागे मन से तुझे आशीष देऊं ॥ ५ । और जब इज़हाक अपने बेटे एसौ से बातें करता था तब रिवकः ने सुना और जब एमाग गांव अहेरने बन को राया ॥ ६। तब रिवाः ने अपने बेटे यअकब से कहा कि देख मैं ने तेरे भाई एसौ से तेरे पिता को यह कहते सुना॥ ७॥ कि मेरे लिये मृग माम मार ला और मेरे लिये स्वादित भोजन पका जिनत खाऊं और अपने मरने से पहिले परमेश्वर के अागे 'तुझे आशीष देऊं ॥ ८ । से अब हे मेरे बेटे मेरो आजा के समान मेरी बात को मान ॥ । अब झुंड में जा और वहां से बकरी के दो मेम्ने मुझा पास ला और में तेरे पिता की रुचि के समान उस के लिये सादित भाजन बनाऊंगी। १० । चार तू अपने पिता के पास ले जाइयो जिसने बुह खाय और अपने मरने से आगे तुझे आशीष देवे। ११ । नव यअब ने अपनी माता रिवका से कहा दख मेरा भाई एसौ रोगार मनुष्य है और मैं चिकना हं॥ १२। क्या जाने मेरा पिता मझे वाले और मैं उन पास बली की नाई ठहरूं और आशीष नहीं परन्तु अपने ऊपर नाप लाऊं ॥ १३ । उस की माता ने उसे कहा कि तेरा साप मुझ पर होने हे मेरे बेटे तू केवल मेरी बात मान और मेरे लिये जाके ला॥ १४ । से वुह गया और अपनी माता पाम लाया और उस को माता ने उम के पिता की रुचि के ममान