पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/६३५

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१३ पबै] को २ पुस्तका लिया। को कहला भेजा कि मैं रब्बः से लड़ा और मैं ने पानियों के नगर को ले २८। अब आप उबरे हुए लोगों को एकट्ठा करिये और दूम नगर चो आगे छावनी करके उसे लीजिये न हो कि मैं उस नगर को ले और मेरा नाम उस पर होवे॥ २६ । तब दाऊद ने सारे लोग एकद्वे किये और रब्बः पर चढ़ा और लड़ के उसे ले लिया। ३.। और उस ने वहां के राजा का मुकुट उस के सिर पर से लिया उस का तौल रत्न महित एक नोड़ा सोने का था और वुह दाजद के सिर पर था और उस ने उस नगर से बहुत सौ लूट निकाली॥ ३१। और उस ने उस में के लेागों को बाहर निकाल के बारों और लोहे के दावने की गाड़ी से और कुल्हाड़ों के नीचे किया और उन्हें ईटों के पैजावे में से चलाया और उन ने अम्मून के संतान के सारे नगरों से ऐसा ही किया और दाजद सेना समेत यरूमलम को फिरा। १३ तेरहवां पर्ख। र इम के पीछे ऐसा हुआ कि दाऊद के बेटे अबिसलुम को एक ( सुंदर बहिन थी जिस का नाम तमर और दाजद के बेटे अमनून ने उन पर मन लगाया था ॥ २। और अमनून ऐसा बिकल हुआ कि अपनी बहिन नमर के लिये रोगी हुआ क्योंकि बुह कुंभारी थी पर कुछ बन न पड़ना था॥ ३ । परंल चमनन का एक मित्र था जिस का नाम यूनदव जो दाऊद के भाई सिमनाह का बेटा था और यू नदब एक अति चतुर जन था। ४ । सेो उम ने उसे कहा कि राजा का बेटा होके तू क्यों प्रति दिन दुर्बल होता जाता है क्या तू मुझ से न कहेगा नव अमनून ने उसे कहा कि मेरा जीव अपने भाई अविसलम को बहिन तमर पर लगा है। ५। लव यूनदब ने उसे कहा कि तू अपने बिछौने पर पड़ा रह और श्राप को रोगी ठहरा और जब तेरा पिता तुझे देखने जावे तो उसे कहियो कि मैं श्राप की बिनती करता हूं कि मेरी बहिन तमर को आने दोजिये कि मुझे कुछ खिलाचे और मेरे श्रागे भाजन बनावे जिसने मैं देखू और उस के हाथ से खाज । से अमनून पड़ा रहा और आप को रोगी ठहराया और जब राजा उसे देखने को आया जी