पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/६३६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

६२८ समूएल [१३ पन्न तो अमभून ने राजा से कहा कि मैं आप की बिनती करता है कि मेरी वहिन तमर को श्रामे दीजिये कि मेरे आगे दो फुलके पकावे जिसने मैं उस के हाथ से खाऊ॥ ७॥ तब दाऊद ने तमर के घर कहला भेजा कि अभी अपने भाई अमनून के घर जा और उस के लिये भोजन बना ॥ ८। सेर तमर अपने भाई अमनून के घर गई और बुह पड़ा हुआ था और उस ने पिसान लेके गूंधा और उस के आगे फुलके बनाये और पकाये । और उस ने एक पात्र लिया और उन्हें उस के आगे उंडेला पर उस ने खाने को नाह किया नब अमनून ने कहा कि सब जन मुझ पास से बाहर निकल जाओ से हर एक उस पास से बाहर गया। १०। और अमनून ने तमर को कहा कि भाजन कोठरी के भीतर ला कि मैं तेरे हाथ से खाऊं से नमर फुल के जो उन ने बनाये थे उठा के कोठरी में अपने भाई अमनून पास लाई। १९। और जब वुह खिलाने के लिये उस के आगे लाई उस ने उसे पकड़ा और उसे कहा कि श्रा बहिन मेरे संग लेट जा ॥ १२ । पर वुह बोली नहीं भाई मुझे निंदित मत कर क्योंकि इसराएलियों में यह बात उचित नहीं सो एसौ मुर्खता मत कर ॥ १३। और मैं किधर अपना कलंक कुड़ाऊं और तू जो है सो इसराएलियों में एक मूढ़ की नाई होगा से मैं तेरी विनती करती हं कि राजा से कहिये वुह मुझे तुझ से न रोकेगा। १४। तथापि उस ने उस की बात न मानी परंतु उस्से प्रबल है। के वरवस किया और उस्मे अकर्म किया। १५ । तब अमनन ने उससे अति चिन किया यहां लो कि जिस दिन से घिन किया उस प्रौति से जो वुह उस्मे रखता था अधिक हुआ और अगनून ने उसे कहा कि उठ दूर हो। १६ । और उस ने उसे कहा कि यह बुराई कि त ने मुझे निकाल दिया उससे जोस ने मुझ से किई अधिक है पर उस ने न माना॥ १७॥ तब अमनून ने अपने सेवा करवैये एक दास को बुला के कहा कि अब इसे मुझ पास से निकाल दे और उस के पीछे द्वार में अगरी लगा। १८। और उस पर बहुरंग बस्त्र था क्योंकि राजा की कुंवारी बेटियां ऐसा ही बस्त्र पहिनती धौं तब उस के सेवक ने उसे बाहर कर दिया और उस के पौके द्वार पर अगरी लगाई। १६ । और तमर ने सिर पर धूल डाली और अपना