पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/६३७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

को २ पुरुइक। १३ पर्च बहुरंगी बस्त्र फाड़ा और सिर पर हाथ धर के रोती चनौ गई ॥ २० । और उस के भाई अबिसनु म ने उसे कहा कि क्या तेरा भाई अमनून तेरे संग हुआ परंतु हे बहिन अब चुपकी हे। रह वुह तेरा भाई है उस बात पर अपना मन मत लगा तब तमर अपने भाई अबिमलुम के घर में अति उदासीन पड़ी रही॥ २१। परंतु दाजद राजा दून सब बातों को सुन के अति क्रुद्ध हुआ। २२ । और अबिसलुम ने अाने भाई अमनून को कुछ भला बुरा न कहा इस लिये कि अविसलम अमनून से घिन करता था क्योंकि उस ने उस की बहिन तमर से बरबम किया था। २३ । और पूरे दो बरस के पीछे ऐसा हुआ कि यअल हसर में जो इफरायम के लग है अबिसनुम की भेड़े के रोम कतरवैये थे तय अबिसलुम ने राजा के सब बेटों को नेउता दिया। २४ । और अविमलम राजा पास आया और कहा कि देखिये अब तेरे सेवक की भेड़ों के ऊन कतर वैधे हैं से अब मैं तेरी बिनती करता हूं कि राजा और उस के सेवक भो तेरे दास के साथ चलें ॥ २५ । तब राजा ने अबिसलुम से कहा कि नहीं बेटे हम मब के सब न जायें जिस्तें न हो कि तुझ पर भार होवे और उस ने उसे बहुत मनाया परंतु तदभी वुह न गया पर उसे आशीष दिया । २६। नव अबिसलुम ने कहा कि यदि नहीं तो मैं आप की बिनती करता हूं कि मेरे भाई अमनून को हमारे साथ जाने दौजिये तब राजा ने उसे कहा कि बुद्द किस लिये तेरे साथ जाय ॥ २७। परंतु अवि- सलुम ने उसे बहुत मनाया तब उस ने अमनून को और सारे राज पुत्रों को उस के साथ जाने दिया ॥ २८ । और अबिमलुम ने अपने सेवकों को कह रक्खा था कि चीन्ह रक्खो कि जब अमनन का मन मदिरा से मगन होवे और मैं तुम्हें कहूं कि अमनून को मारो तब उसे घात कीजियो डरियो मन क्या मैं ने तुम्हें अाज्ञा नहीं किई से ढाढ़स सूरता कीजियो॥ २६। और जैसी कि अबिमलुम ने उन्हें आज्ञा किई थी वैसा हो उस के सेवकों ने अमनून से किया तब समस्त राज पत्र उठे और हर एक जन अपने अपने खच्चर पर चढ़ भागा ॥ ३.। और ऐसा हुआ कि उन के मार्ग में होते ही दाऊद पाम यह समाचार पहुंचा कि अबिसलुम ने सारे राज पुत्रों को मार डाला और