पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/६३९

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२५ पब्बै] की २ पुस्तक। अत्रा रत्नी राजा से बोली वुह भूमि पर छाँधे मूंइ गिरी और दंडवत करके बोली कि हे राजा छड़ाइये ॥ ५ । तब राजा ने उसे कहा कि तुझे क्या और वालो में निश्चय विधवा स्त्री हूं और मेरा पति मर गया है। ६। और आप की दासी के दो बेटे थे उन दोनों ने खेत में झगड़ा किया और उन में कोई न था कि कुड़ावे और एक ने दूसरे को मारा और बध किया ॥ ७। और देखिये कि सारे घराने श्राप को दासी पर उठे हैं और वे कहते हैं कि जिस ने अपने भाई को मार डाला उसे हमें मोपदे जिसने हम उस के भाई के प्राण को संती जिसे उन ने घात किया उसे मार डालें और हम अधिकारी को भी नाश करेंगे और यो वे मेरी बची हुई चिनगारी को भी बुझा डालेंगे और मेरे पति के नाम औरर बचे हुए को भूमि पर न छोड़ेंगे। ८। तब राजा ने उस स्त्री से कहा कि अपने घर जा और मैं तेरे विषय में नाज्ञा करूंगा॥ । तब नक़ल की उम स्त्री ने राजा से कहा कि मेरे प्रभु राजा सारी बुराई मुझ पर और मेरे पिता के घराने पर वे और राजा और उम का सिंहासन निर्दोष रहे॥ १० । नब राजा ने कहा कि जो कोई तुझो कुछ कहे उसे तुझ पास ला और वुह फिर तुझे न छूयेगा॥ ११। तब वुह बान्नी में बिनती करती हूं कि राजा अपने ईश्वर परमेश्वर को स्मरण करे कि रुधिर का पलटा दायक मेरे बेटे को धान करने को न बढ़े तक वुह वाला परमेश्वर के जीवन से तेरे बेटे का एक बाल भी भूमि पर न गिरेगा ॥ १२। तब उस स्त्री ने कहा कि मैं तेरी बिनती करती हूं कि अपनी दासी को एक बार अपने प्रभु राजा से कहने दीजिये वुह बोला कहे जा॥ १३ । तब उस स्त्री ने कहा कि अपने किस लिये ईश्वर के लोगों के विरुङ्ग ऐसी चिंता किई क्योंकि राजा ऐसी बात कहते हैं जैसा कोई इस बात में दोषी है कि राजा भेज के अाने निकाले जए को घर में फेर नहीं जाने। १४। क्योंकि हमें मरने पड़ेगा और पानी के समान हैं जो भूमि पर गिराया जाके बटेरा नहीं जा सका और ईश्वर भी मनुष्यन्व पर दृष्टि नहीं करता तथापि युह युक्ति करना है कि उस का निकाला हुआ उससे अलग न रहे। १५ । से। अब जो मैं अपने प्रभु राजा पास इस बात के विषय में कहने आई हूं इस कारण कि लोगों ने