पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/६४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

५४ उत्पत्ति [२८ पर्च सो उम आशीष के कारण जिसे उस के पिता ने उसे दिया था एसी ने यजयाब का बैर रक्खा धार एमाले अपने मन में कहा कि मेरे पिता के शोक के दिन धाते हैं कि मैं अपने भाई वचकब का मार डालंगा। ४२। और रिक्कः को उस के जेठे बेटे एसो की ये बातें कही गई तब उम ने अपने छुटके बेटे यअकब का बुल्ला भेजा और कहा कि देख तेरा भाई एसो तुझे घात करने को तेरे विषय में अपने को शांति देता है। ४३ । से। इस लिये हे मेरे बेटे त अब मेरा कहा मान उठ और मेरे भाई जाबन पास हराम को भाग जा । ४४ । और थोड़े दिन उस के माथ रह जबलों तेरे भाई का कोप जाता रहे। जबलों तेरे भाई का क्रोध तु से न फिरे और जो तू ने उसो किया है से भूल जाय तब मैं तुझे वहां से बुला भेजूंगी किस लिये एकही दिन में तुम दोनों को खाऊ ॥ ४६ । वब रिवका ने रजहाक से कहा कि हिन की बेटियों के कारण अपने जीवन से सकेत हं से यदि यअकब हित की बेटियों में से जैसी उस देश की लड़कियां हैं लेवे तो मेरे जीवन से क्या फन्न है ॥ २८ अठाईसवां पर्य। पर इजहाफ ने बनकब को बुलाया और उसे आशीष दिया और कहा कि तू कनानी लड़कियों में से पानी न लेना उठ और फहानराम में अपने नाना वतूएल के घर जा और वहां से अपने मामू लाबन की लड़कियों में से पानी ले ॥ ३। और सर्वसामर्थी ईश्वर तुझे आशीष देवे और तुझे पालमान करे और तुझ बढ़ावे जिसतें तू लोगों की मंडली होवे। ४। और अबिरहाम का आशीष तुझे और तेरे संग तेरे वंश को देवे जिसने तू अपनी टिकाव की भूमि में जा ईश्वर ने अबिर हाम को दिई अधिकार में पावे ॥ ५। फिर इज हाक ने यअकब को बिदा किया और बुह फद्दानअराम में सूरियानी बलूगल के वेटे लावन पास गया जो यअकूब और एसो की माता रिवकः का भाई ई । और एस ने जब देखा कि इजहाक ने यचच को श्राशीघ दिया और उसे फहान अराम से पत्नी लेने को वहां भेजा और कि उस ने था।