पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/६४३

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१५ पर्न को २ पुस्तक । राजा के आगे आगे गये॥१८तब राजा ने जन्ती इत्ती से कहा कि तू भी हमारे साथ क्यों आता है अपने स्थान को फिर जा और राजा के माथ रह क्योंकि त परदेशी और निकाला हुआ है। २.। कल ही तू आया है और आज मैं तुझे नमा के बनाऊं और मेरे जाने का कहीं ठिकाना नहीं सो त फिर जा और अपने भाइयों को ले जा और दया और सत्य तेरे साथ होवे । २१। तब दूतो ने राजा को उत्तर दे के कहा कि परमेश्वर के और मेरे प्रभु राजा के जोवन से निश्चय जिम स्थान में मेरा प्रभ राज्ञा होवेगा चाहे मृत्यु में चाहे जीवन में वहीं श्राप का सेवक भी होगा। २२ । और दाजद ने दूली को कहा कि पार उतर जा तब दूत्ती जती पार उतर गया और उस के सारे मनुष्य और उस के साथ सब लड़के बाले चले ॥ २३। और मारे देश ने चिन्ला चिल्लाके बिलाप किया और मारे लोग उतर गये और राजा भो किटन के नाले पार उतर गया और समस्त लोगों ने पार उतरके वन का मार्ग लिया ॥ २४। और देखो कि सशक भी और समस्त लावी ईश्वर की साक्षी की मंजूषा लिये हुए उस के साथ थे से उन्हों ने ईश्वर की मंजूषा को रख दिया और अविवतर चढ़ गया जब लो कि सारे लोग नगर से निकल आये २५ । तब राजा ने सटूक से कहा कि ईश्वर की मंजूषा नगर को फेर ले जा यदि परमेश्वर के अनुयह की दृष्टि मुझ पर होगी तो वुह मुझे फेर लावेगा और उसे और अपने निवास काम में दिखावेगा ॥ २६ । पर यदि वुह यों कहे कि अब मैं तुझ से प्रसन्न नहीं देख मैं जो वुह भला जाने से मुझ से करे॥ २७। और राजा ने सदूक याजक को फिर कहा क्या तू दर्शी नहीं मगर को कुशन से फिर और तेरे संग तेरे दो बेटे अखिमअज और यहूनतन अविवतर का बटा ॥ २८ । देख मैं उस बन के चौगान में ठहरूंगा जब लो कि तुम्हारे पास से कुछ संदश २६ । से सटूक और अबिब तर ईश्वर की मंजषा का यरूमनम में फेर लाये और वहीं रहे। ३० । और दाजद जलपाई के पहाड़ की चढ़ाई पर चढ़ता गया और चढ़ने चहने बिलाप करता गया उस का मिर ढया हुआ थौर नंगे पांच था और उस के साथ के सारे लोग अपने सिर ढापे हुए बिलाप करते चढ़ते चले जाते थे। ३१। एक ने ॥ आवे॥