पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/६५५

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१६ पर्व ४०। कोर पन्तका और गायिका का शब्द मुन सका हूँ फेर आप का सेवक अपने प्रभु राजा पर क्यों बोझ होवे ॥ ३६ । आप का सेवक राजा के मंग थाड़ी टूर परदन के पार चलेगा और किस कारण राजा एसे फल से प्रतिफल देवे॥ ३७॥ अपने सेवक को बिदा कौजिये कि फिर जाय जिमतं में अपने ही नगर में अपने माता पिता की समाधि पाम मरूं परंतु देखिये आप का सेवक किम हाम मेरे प्रभु राजा के साथ पार जाय जो कुछ आप भला जाने से उस कीजिये। ३८। तब राजा ने उत्तर दिया कि किमहाम मेरे माय पार चले और जो कुछ मम अच्छा लग सोई उस के लिये करूंगा और जो कुछ तेरो इच्छा होय सोई. मेरे लिये करूंगा। और समस्त लोग यरदन पार गये और जब राजा पार आया तो राजा ने बरजिलो को चूमा और उसे आशीष दिया और बुह अपने ही स्थान को फिर गया। तब राज्ञा जिलजाल को चला और किमहाम उस के माथ साथ गया और मारे यहूदाह के लोगां ने और इमरायल के आधे लोगों ने भी राजा को पहुंचाया। ४१। और देखा कि सारे दूसराएल राजा के पास आये और राजा से कहा कि हमारे भाई यहूदाह के लोगों ने आप को हम से क्यों चराया है और राजा को और उम के घराने को और दाजद के ममस्त लोग महित यरहन पार नाय हैं। ४२। और समस्त यहूदाह के मनुष्यों ने दूसराएल के मनुष्यों को उत्तर दिया इस कारण कि राजा हमारे कुट म्न हैं सो इस बात में तुम क्या क्रुद्द होते है। क्या हम ने राजा का कुछ खाया है अथवा क्या उस ने हमें कुछ दान दिया है॥ ४३ । फिर दूसराएल के मनुस्यां ने यहूदाह के मनुष्यों के उत्तर दिया और कहा कि राजा में हम दस भाग रखने हैं और दाऊद पर हमारा पद तुम से अधिक है सेो तुम ने क्यों हमें हनुक समझ कि राजा के फेर लाने में पहिले हम से क्या नहीं पक्का और वहाह के मनुष्या की बातें इसराएल के मनुष्यों को यातों से प्रबल हुई।