पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/६६

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५ ह [२९ पर्व ब उत्पन्ति और मझे खाने को रोटी और पहिन्ने को कपड़ा देवे ॥ २१। ऐसा कि मैं अपने पिता के घर कुशल से फिर आऊं तब परमेश्वर मेरा ईश्वर होगा॥ २२। और यह पत्थर जो मैं ने खंभा मा खड़ा किया ईश्वर का मंदिर होगा और सब में से जो न मुझे देगा दमयां भाग अवश्य तुझे देउंगा। २६ उन्नीसवां पच्च। ता यअकब ने पांव उटाया और पूर्वी पुत्रों के देश में आया । २ । उस ने दृष्टि किई और खेत में एक कूआं देखा और लो कि कूर के लग भेड़ों के तीन अँड बैठे हुए हैं क्योंकि वे उसी कूएं से मुंडों को पानी पिलाते थे और कर के मुंह पर बड़ा पत्थर धरा था ॥ ३। और वहां सारी झंड एकटी होती थी और वे उस पन्यर को कर के मुंह पर से दुलका देते थे और भेलों को पानी पिलाके पत्थर को उस के मुंह पर फिर रखने थे ॥ ४ । तब यअकब ने उन से कहा कि मेरे भाइयो कहाँ के हो और चे बोले कि हम हरान के हैं। ५ । फिर उस ने उन से पूछा कि तुम नहर के बेटे सावन को जानते हो और वे बोले जानते हैं। ६। और उन ने उन्हें कहा कि वह कुशल से है और वे बोले कि कुशल से है चार देख उस की बेटी राखिल भेड़ों के साथ आती है। ७1 नव बोला देखो दिन अब भी बड़ा है और दोरों के एकटे करने का समय नहीं तुम भेड़ों को पानी पिसाके चराई पर ले जाशे॥ वाले हम नहीं सक्ने जब ले कि सारे कुंड एकटे न होयें और पन्यर को कर के मुंह पर से न दुलकावें तब हम भेड़ों को पानी पिलाते हैं । बुह उन से यह कहि रहा था कि राखिल अपने पिता की भेड़ों को लेके १० । क्योंकि वह उन की रखवालनी थी और यों हुआ कि यअकब अपने मामू साबन की बेटी राखिल को और अपने मामू लावन की भेड़ों को देखके पास गया और पत्थर को कुएं के मुह पर से काया और अपने माम लाबन की भेड़ों को पानी पिलाया ॥ और यन्त्रकन ने राखिल को चूमा और चिला के रोया ॥ १२ ॥ और यत्रकूब ने राखिल से कहा कि मैं तेरे पिता का कुटुम्ब और रिवकः आई॥