पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/६७५

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३ पञ्च चला था तू । सो को १ पुस्तक॥ बिनती किई किन ने मेरे पिता अपने सेवक दाकद को बड़ा दाम दिया इस कारण कि वुह तेरे आगे सच्चाई और धर्म और मन को खराई. से और ने उम पर यह बड़ा अनुग्रह किया कि तू ने उम के सिंहासन पर बैठने के लिये एक बेटा दिया जैसा आज के दिन है। से अब हे परमेश्वर मेरे ईश्वर तू ने मेरे पिता दाजद की संती अपने सेवक को राजा किया और मैं बालक हं बाहर भौतर आने जाने नहीं जानता।। और तेरा सेवक तेरे लोगों के मध्य में है जिन्हें तू ने चुना है बड़े लोग जो अगण्य और बहुत हैं एसा कि गिने नहीं जा सके हैं। अपने लोगों के न्याय करने के लिये अपने सेवक को सुन्ने का मन दे जिसने में भले और बुरे में विवेक करूं क्योंकि तेरे ऐसे बड़ लोगों का न्याय कौन कर सक्ता है ॥ १० । और यह बात परमेश्वर को अच्छी लगी कि सुले. मान ने ऐसौ बस्तु मांगी॥ १९ । और ईश्वर ने उसे कहा इस कारण कि तू ने यह वस्तु मांगी है और अपनी बड़ी आयुदी न चाही और न अपने लिये धन मांगा है और न अपने बैरियों का प्राण चाहा है परंतु अपने लिये न्याय करने को बुद्धि चाही। १२ । देख मैं ने तेरौ बातों के ममान किया है मैं ने एक बुद्धिमान और ज्ञानवान मन तुझे दिया है ऐसा कि तेरे आगे तेरे तुल्य कोई न था और नेरे पीछे नेरे तुल्य होगा। १३ । और मैं ने तुझे वह भी जो तू ने नहीं मांगा अर्थात् धन और प्रतिष्ठा यहां ला दिया है कि राजाओं के बीच तेरे जीवन भर तेरे तुल्य नहीं हुआ है॥ १४ । और यदि तू मेरे मार्ग पर चलके मेरी विधिन और प्राज्ञा का पालन करेगा जिस रीति से तेरा पिता दाजद चलता था तो मैं तेरी बय बढ़ाऊंगा॥ ९५। तब सुलेमान जागा और देखा कि खप्न है फिर वुह यरूसलम को आया और परमेश्वर के नियम की मंजूषा के आगे खड़ा हुआ और होम के बलिदान और कुशल की भेंट चढ़ाई और अपने समस्त सेवको के लिये जेवनार किया। १६। उस समय में हो वेश्या राजा पाम आई और उस के आगे खड़ी हुई। १७। और एक बान्नी कि हे मेरे प्रभु में और यह स्त्री एक घर में रहती हैं और मैं उस के माथ घर में रहते हुए एक बालक जनी॥ १८। और मेरे जन्ने के तीसरे दिन पीछे यों हुआ कि यह स्त्रीभीजनी और