पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/६७९

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५ पद को १ पुस्तक। जी ५ पांचवा पद। पर सूर के राजा हीराम ने सुलेमान के पास अपने सेवकों को भेजा क्योंकि उस ने सना था कि उन्हों ने उस के पिता की संती उसे राज्याभिषेक किया क्योंकि हीराम दाऊद से सदा मौति रखता था ॥२॥ और सुलेमान ने हीराम को कहला भेजा ॥ ३ । कि तू जानता है कि उन लड़ाइयों के कारण जो उस के आस पास चौदिशा घों मेरा पिता दाऊद परमेश्वर अपने ईश्वर के नाम के लिये एक मंदिर न बना सका जब ले कि परमेश्वर ने उन सभी को उस के पातले न कर दिया। ४। परंतु अब परमेश्वर मेरे ईश्वर ने मुझे चारों ओर से चैन दिया यहां लो कि अव न बैरीन उपद्रवी है। ५। सेर देख मैं ने ठाना है कि परमेश्वर अपने ईश्वर के नाम से एक मंदिर बना जैसा कि परमेश्वर ने मेरे पिता दाऊट से कहा कि तेरा बेटा जिसे मैं तेरे सिंहासन पर बैठाऊंगा वही मेरे नाम का मंदिर बनावेगा। ६। सेतू श्राज्ञा कर कि मेरे लिये लुबनान से प्रारज वृक्ष काटें और मेरे सेवक तेरे सेवकों के साथ होंगे और मेरे कहने के समान तेरे सेवकों की बनौ देऊंगा क्योंकि तू जानता है कि हमें यह गण नहीं कि सैदानियों के समान लट्ठा कारें ७। और ऐसा हुआ कि जब हीराम ने सुलेमान की बातों को सुना तब उस ने अयंत भगन होके कहा कि आज परमेश्वर का धन्यबाद होवे जिस ने अपने महत् लोग पर दाऊद को एक बुद्धिमान वेटा दिया ॥ ८। तब हीराम ने सुलेमान को कहला भेजा कि जो जो बात के लिये तू ने मुझे कहलाया है मैं ने समझा और मैं अारज के लट्टे और देवदास के लट्टे के विषय में तेरी समस्त इच्छा करूंगा। । मेरे सेवक उन्हें लू बनाम से समुद्र पर लायेंगे और उन्हें बड़ी में समुद्र पर से उस स्थान लो जहां न कहे पहुंचाऊंगा और वहां डलवा देऊंगा और न पायेगा और तू मेरी इच्छा के समान मेरे घराने के लिये भोजन दे। १.। सो हीराम को आरज्ञ वृक्ष और देवदारु वृक्ष अपनी समस्त बांछा के समान दिये। ११ । और सुलेमान ने हीराम को उस के घराने के भोजन के लिये बरस बरस बीम सहस पैमानः मेहं और बौम पैमानः निराला [A,B.S.) ॥ ने सुलेमान 85