पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/६८१

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को १ पुस्तक । ६७५ उस ने चारों ओर सकेत सकेत स्थान बनाये जिसने लट्टे घर को भीनों में जमाये न जावें। ७। और जब घर बन रहा था वहाँ लाने से आगे पत्यर सुधारा हुया था यहां ले कि न हधौड़ा और न कुल्हाड़ी और न लोहे का कोई हथियार घर बनाने में सुना गया। ८। बीच की कोठरी का द्वार घर की दहिनौ अलंग रक्खा और वे घूमती मौटी से बीच में और उसो तोमरौ अारी में चढ़ते थे। । सेो उस ने उस घर का बनाया और समाप्त किया उस की कून आरज के लट्ठ की पटरियों से पाटो॥ १.। और उस ने समस्त घर के ग्राम पास पांच पांच हाथ की ऊंची कोठरियां बनाई और वे प्रारज के लट्ठों से घर पर थंभी हुई थीं। ११ । तब परमेश्वर का बचन यह कहते हुए मुलेमान पर उतरा। १२। कि यदि तू मेरी विधिन पर चलेगा और मेरे विचारों को पर्ण करेगा और मेरी समस्त प्राज्ञाओं को पालन करके उन पर चलेगा तो इस घर के विषय में जो तू बनाता है मैं अपने बचन को जो तेरे बाप दाजद से कहा था तेरे साथ पूरा करूंगा। १३ । और में इसराएल के संतानों में बास करूंगा और अपने इसराएली लोगों को न्याग न करूंगा। २४ ॥ सो सुलेमान ने घर बनाके समान किया ॥ १५ । और उस ने घर की गच से ले के भीत से छत से प्रारज काष्ठ के पटरे लगाये और उस ने भीतर की अलंग काछ से ढांप दिया और घर की गच को दबदारु को पटरियों से ढांपा ॥ १६। और उस ने घर की गच और भीतें प्रारज के पटरों से घर को चलंगों में बौम चौम हाथ की बनाई उस ने उस के भीतर के लिये अर्थात ईश्वरीय बाणो के लिये अर्थात् अत्यंत पवित्र स्थान के लिये बनाये। १७। और घर अर्थात आगे का मंदिर चालीस हाथ था। १८। और घर के भीतर आरज की खादी हुई कली और खिले हुए फूल थे सब के सब अारज के थे कोई पन्थर दिखाई न देता था। १६ । और घर के भीतर परमेश्वर के नियम की मंजूषा रखने के लिये ईश्वरीय बाणी का स्थान सिद्द किया। २.1 और ईश्वरीय बाणी के आगे की ओर लम्बाई में बीस हाथ और चौड़ाई में बीस हाथ और अंचाई में बीम हाथ और उसे निर्मल सोने से मढ़ा और प्रारज की वेदी २१ । और मुलेमान ने घर के भीतर भीतर निर्मल सेाने को भी महा॥