पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/६८२

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राजावली [६ पद से मढ़ा और उस में ईश्वरीय वाणी के आगे सोने की सौकरों के लग एक आड़ बनाया और उस पर सोना मढ़ा ॥ २२ । और सारे घर को सोने से मढ़ा यहां लो कि समस्तघर बन गया और समस्त बेदी को जो ईश्वरीय बाणौ के लग थी सोने से मढ़ा॥ २३ । और ईश्वरीय बाणी के भीतर नेल क्ष के दस दस हाथ अंचे दो करीबी बनाये ॥ २४। और करीबी का एक पंख पांच हाथ का और दूसरा पंख पांच हाथ का एक के पंख के एक खूर से लेके दूसरे पंख के खूट ले दस हाथ थे॥ २५ ! और दूसरा करीबी दस हाथ का दोनों करीबियों को एक ही नाप और एक ही डौल का बनाया ॥ २६ । एक करीवी की ऊंचाई दस हाथ और वैसी ही दूसरी करीबी की भी। २७। और उस ने दोनों बारीबियों को भीतर के घर में रकबा और करीबी अपने डैने फैलाये हुए थे यहां लांकि एक का डैना एक भौत को छूता था और दूसरे करीबो का डैना दूसरी भीत को छूता था और उन के डैने एक दूसरे को घर के बीच में छूता था॥ २८। और उस ने करीबियों को सोने से मढ़ा। २८ । और घर की सारी भौतों को चारों ओर खोदे हुए करीबियों की सूरने से और खजूर पेड़े से और खिले हुए फूलों से बाहर भीतर खोदा ॥ ३० । चौर घर की गच को बाहर भीतर सोने से मढ़ा । ३१ । और ईश्वरीय वाणी में पैठने के लिये उस ने जलपाई पेड़ के केबाड़े बनाये और महोट और साह भीन के पांचवें भाग थे॥ ३२॥ और केवाड़े के पाट जलपाई काष्ठ के थे उस ने उन पर करीबियों को और खजूर पेड़ों को और खिले हुए फूलों को खोदा और करीबियों और खजूर पेड़ों पर सोना मढ़ा ॥ ३३ । वैसा उस ने मंदिर के द्वार के लिये जिस की चौखट जलपाई काष्ठ की थी भीत को चौथा भाग बनाया ॥ ३४। और उस के दो केवाड़े देवदारु काष्ठ से बनाये और उन दोनों केवाड़ों के दो दो पाट दोहराए जाते थे। ३५ । और उन पर करीवियों और खजूर पेड़ और खिले हुए फूल खादे और उन खोदे हुए कार्यों को सोने से मढ़ा ॥ ३६ । और उस ने भीतर के आंगन की तीन पाती खादे हुए पत्थर की बनाई और एक पाती प्रारज के काष्ठ की। ३७। चौथे बरस जौफ के मास में परमेश्वर के मंदिर को नव डाली गई। ३८। और ग्यारहवें बरस बुल में के मास