पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/६८५

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की पुस्तक हुआ था और उस में दो सहन मन की समाई थी। २७। और टम ने पीतल के दस आधार बनाये एक एक आधार चार हाथ का लम्बा चार हाथ चौड़ा और तीन हाथ ऊंचा । २८ । और उन आधारों का कार्य ऐसा था उन के कार थे और कोर कारों के मध्य में थे॥ २६। और कोरों के मध्य में छोर के ऊपर सिंह और बैल और करीबी थे और कारों के ऊपर एक श्राधार था और सिंह और वैलों के नीचे कई एक अच्छे चोखे कार्य बनाये ॥ ३० । और हर एक अाधार के लिये पीतल को चार चार पहिया और पीतल के पत्र थे और उन के चार कोनों के लिये नीचे के आधार थे और स्नान पात्र के नीचे हर एक साज की अलंग ढले हुए नीचे के आधार घे॥ ३१ । और उस का मह झाड़ के भीतर और ऊपर हाथ भर का परंतु उस का मुंह मेग्ल उस के आधार के कार्य को नाई डेढ़ हाथ का था और उस के मुंह पर चित्रकारी और चौकोर गेष्ट थे गोल नहीं ॥ ३२। और गोट के नीचे चार पहिया थीं और पहियों की धुरी आधार में थी और हर एक पहियों की ऊंचाई डेढ़ हाथ की थी॥ ३३॥ और पहियों का काम रथ के पहियों के कार्य के समान उन की धुरी और माझा और पुट्ठी और पारा सब ढले हुए थे ॥३४ । और हर एक आधार के चारों कोनों के नीचे के चार अाधार थे और नीचे के आधार उसी आधार ही से थे। ३५। और अाधार के मिरे पर चारों और आधा हाथ ऊंचा और आधार के सिरे पर उन के कोर और उम के गोट एक ही थे। ३६ । क्योंकि उस के कोरों का पत्तर यौर उन के गोट पर करीबी और सिंह और खजूर पेड़ हर एक के डौल और चारों और के साज के समान उम ने खोदा ३७। इस डौल से उम ने दम अाधार को बनाया और उन सब का नाप जोख चौर ढाल एक ही था॥ ३८। तब उस ने पीतल के दस तान पात्र बनाये हर एक स्नान पान में मन चालीम एक को समाई थी और हर एक स्नान पात्र चार हाथ का था उन दसे आधारों में हर एक पर एक स्नान पात्र या॥ ३८ । र उम ने पांच आधार दहिनी अलंग और पांच बाई अन्नंग रको औरर उम ने समुद्र को पूर्व और घर की दाहिनी अलंग दक्खिन के सन्मुख रखा। ४.1 और हीराम ने पात्र और फावड़ियां