पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/७२

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उन्पत्ति [३१ पर्ष तुम जानती तुम्हारे पिता का रूप आगे की नाई. मेरी और नहीं है परन्त मेरे पिता का ईनर मुफ पर प्रगर हुआ। ६ । और हो कि मैं ने अपने सारे वस्न से तुम्हारे पिता की सेवा किई है ॥ ७॥ और तुम्हारे पिता ने मुझे कूता है और इस बार मेरी बनी बदल दिई पर ईश्वर ने मुझे दुख देने को उसे न छोड़ा॥ ८। यदि वुह यों बोला कि फुटफुरियां तेरी बनी होगी तो सारे ढोर फुटफुयिां जने और यदि उम ने ये कहा कि पट्टेबाली तेरी बनी में हांगी तो ढोर पट्टेवाले जने ॥ । यो ईश्वर ने तुम्हारे पिता के हार लिये और मुझे दिये ॥ १.। और यांजा कि जब ढोर गर्भिणी हुए तो मैं ने खप्न में अपनी आंख उठाके देखा और क्या देखता हूं कि मेले जा टोर पर चढ़ते हैं सो पट्टेवाले औरर फुटफुटिये और चितकबरे थे ॥ १९ । और ईश्वर के दूत ने स्वप्न में मुझे कहा कि हे यअकूव मैं बोला कि यहीं हूँ॥ १२ ॥ तब उस ने कहा कि अब अपनी आंख उठा और देख कि सारे मेंढे जो भेड़ों पर वसने हैं पवेवाले और फुटफुरिये और चितकबरे हैं क्योंकि जा कुछ लावन ने तुझ से किया मैं ने देखा है। १३ । बैतएल का ईश्वर जहां तू ने खंभे पर तेल डाला और जहां तू ने मेरे लिये मनौती मानी मैं हूँ अब उठ इस देश से निकल जा और अपने कुटुम्ब के देश को फिर १४। तब राखिल और लियाह ने उत्तर देके उसे कहा क्या श्रय लो हमारे पिता के घर में हमारा कुछ भाग अथवा अधिकार है।। १५ । क्या हम उस के लेखे पराये नहीं गिने जाते हैं क्योंकि उस ने तो हमें बेच डाला है और हमारी रोकड़ भी खा वैठा है। १६ । परन्तु ईश्वर ने जो धन कि हमारे पिता से लिया और हमें दिया वही हमारा और हमारे बालकों का है सो अब जो कुछ कि ईम्बर ने श्राप से कहा है सो करिये। १७। तब यअकब ने उठके अपने बेटी और पत्नियों को ऊंटो पर बैठाया॥ १८। और अपने सब चौपाए और सामग्री जो उस ने पाई थी अपनी कमाई के चौपाए जो उस ने फहानअराम में पाए थे ले निकला जिसने कनान देश में अपने पिता पूजहाक पास जावे ॥ १६ । और लावन अपने भेड़ का रोम कतरने को गया और राखिल ने अपने पिता की कई एक मूर्षि चरा लिई । २० । और जा॥