पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/७२३

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२. पञ्च ११ । फिर कौ १५तक। पाम भेजूंगा और वे तेरे घर और तेरे सेवका के घर को खाजग और एसा हेमा कि जो कुछ तेरी दृष्टि में मनभावनी होगी वे अपने हाथ में करके ले श्रावगे। ७। तब इसराएल के राजा ने देश के समस्त प्राचीन को बला के कहा कि चौन्ह रकले और देखा कि वह कैसा बिरोध दूंढ़ता है क्योंकि उम ने मेरी पनियां और बानको के और मेरे रूपा और सेना के लिये लोगों को भेजा और मैं ने उसे न रोका। ८। तब सारे प्राचीन और सारे लोगों ने उसे कहा कि मन सुनियो और मत मानियो॥ है। इस लिये उस ने बिनहट्द के दूना से कहा कि मेरे प्रभु राजा से कहा कि जो तू ने अपने सेवक को कहला भेजा से। सब मैं करूंगा परन्तु यह कार्य में न कर सकूँगा तब दूतो ने जाके सन्देश दिया ॥ १.। तब बिनहदद ने उस पास यह कहला भेजा कि देवगण मुझ से ऐसा ही करें और उससे अधिक यदि समरून को धूल मारे लोगों के लिये जा मेरे चरण पर हैं मुट्ठी भर भर होवे ॥ इसराएल के राजा ने उत्तर देके कहा कि तुम कहो कि जो जन काट कसना है सेो उस के समान जो कटि खोलता है गर्व न करे। १२। और यो हुअा कि जब बुह राजाओं के साथ तंबूओं में पी रहा था उम ने यह बचन सुना तो अपने सेवकों को कहा कि नगर के बिरुङ्ग लैस हो रहा और वे नगर के विरुद्ध लैस हो रहे। १३। और देखो कि इसराएल के राजा अखिअब पास एक भविष्यद्वक्ता ने अाके कहा कि परमेझार यो कहता है कि क्या तू ने इस बड़ी मंडली को देखा है से देख मैं आज सभा को तेरे हाथ में माँगा और त जानेगा कि मैं हौं परमेश्वर हूं। २४ । तब अखिअब ने पूछा कि किन के द्वारा से वुह बोला कि परमेश्वर यां कहता है कि देश देश के अध्यक्षों के द्वारा से फिर उसने पछा कि संग्राम में कोन पानी बंधाचे उस ने उत्तर दिया कि तू ॥ १५ । नव उस ने देश के अध्यक्षों के तरुण को गिना और वे दो सौ वत्तीस जन जर फिर उस मे इसराएल के समस्त सन्तान को भी गिना और वे सात सहस्र जन हुए। १६। और वे सब दो पहर को निकले परन्तु बिनहदद और बत्तीस राजा जो उस के सहायक थ तंबूत्रों में पी पी के मतवाले होते थे ॥ १७। तब दशा के अध्यक्षों के