पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/७२६

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राजावली [२१ पब ४०। मार्ग में राजा की बाट जोहने लगा और अपने मुंह पर राख मल के अपना भेष बदला ॥ ३६ । और राजा के उधर जाने जाते उसने राजा को पुकारा और कहा कि तेरा सेवक संग्राम के मध्य में गया था और देखिये एक जन फिरा और मुझ पास एक जन यह कहके लाया कि इस को चौकमी कर यदि किमी रीति से यह पाया न जायगा तो दूस के प्राण को सन्ती तेरा प्राण जायगा और न हीं तो तू एक तोडा चांदी देगा । और जिस समय तेरा सेवक इधर उधर और काम में लिप्त था बुह जाता रहा तब इसराएल के राजा ने उसे कहा कि तेरा यही विचार है तू ही ने चुकाया है। ४१ । फिर उस ने फुरती करके अपने मह की राख पोंछौ तब दूसराएल के राजा ने उसे पहिचाना कि वह भविष्यद्वको में से है॥ ४२ तब उस ने कहा कि परमेश्वर यों कहता है इसलिये कि त ने उस जन को अपने हाथ से जाने दिया जिसे मैं ने सर्वथा नाश के लिये ठहराया था इस कारण उम के प्राण को सन्ती तेरा प्राण और उस के लोगों की सन्तौ तेरे लोग। ४३। तब दूसराएल का राजा उदास और भारी मन होके अपने घर को गया और समरून में आया। २१ इक्कीसवां पर्च। (फर ऐसा हुआ कि नवान यजरअऐली की एक दाख की बारी समरून के राजा अखिअब के भवन से लगी हुई यज़रएल में थौ ॥ २। और अखिअब ने नबात से कहा कि अपनी दाख की बारी मुझे दे कि उसे तरकारी की बारी बनाऊं क्योंकि वह गेरे भवन के लग है और मैं उस को मन्तौ तो उसे अच्छौ दाख की बारी देऊंगा अथवा यदि तेरो दृष्टि में अच्छा लगे तो मैं तुझे उस का दाम रोकड़ दे ऊंगा॥ ३। और नबात ने अखिनच से कहा कि परमेश्वर एसा न करे कि मैं अपने पितरों का अधिकार तुझे देऊं ॥ ४ । तब यजर अली नबान की बात से अखिअव उदास और भारी मन होके अपने घर में आया क्योंकि उस ने कहा था कि मैं अपने पितरों का अधिकार तुझे न देऊंगा और अपने बिछौने पर पड़ा रहा और अपना मंह फेर लिया और रोटी न खाई। ५ । परंत उस की पत्नी ई जविल ने उस पास आके कहा कि तू ऐसा उदास क्या है