पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/७३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

३१ पन्चे] २५। तव लाबन की पुस्तक यअकूत्र अरामी लावन मे अचानक चराके भागा यहां लो कि वह उसो न कहिके भागा ॥ २१ । सो वुह अपना सब कुछ लेके भागा और उठके नदी पार उतर गया और अपना मुंह जिलिअद पहाड़ की ओर किया । २२। और यकव के भागने का संदेश लाबन को तीसरे दिन पहुंचा ॥ २३ । सेर बुह अपने भाइयों को लेके सात दिन के मार्ग लो उम के पीछे गया और जिलिङ्गद पहाड़ पर उसे जा लिया ॥ २४ । परन्तु ईश्वर अरामी साबन कने खप्न में रात को आया और उसे कहा कि चाकम रह तू यअकब को भला बुरा मत कहना ॥ ने यक्ष को जा लिया और यअकूब ने अपना डेरा पहाड़ पर किया था और लावन ने अपने भाइयों के साथ जिलिश्रद पहाड़ पर डेरा खड़ा किया ॥ २६ । तव लाबन ने यवनब से कहा कि तू ने क्या किया जो तू एका एक मुझ से चुरा निकला और मेरी पुत्रियों को खग में की बंधुआई की नाई ले चला ॥ २७॥ तू किम लिये चुपके से भागा और चोरी से मुझ से निकल आया और मुझे नहीं कहा जिसने मैं तुझे आनंद मंगल से भेरौ और ढोल के साथ विदा करना ॥ २८। और तू ने मुझे अपने बेटी और अपनी बेटियों को चूभने म दिया अब तू ने मूर्खता से यह किया है ॥ २६ । तुझे दुःख देने को मेरे वश में है परन्तु तेरे पिता के ईश्वर ने कल रात मुझे यों कहा कि चौकस रह तू यअकब को भला बुरा मत कहना ॥ ३० । और अब तुझे तो जाना है क्योकि तू अपने पिता के घर का निपट अभिलाषी है पर तू ने किस लिये मेरे देवों को चुराया । ३१ । और याकूब ने उत्तर दिया और लावन से कि डरके मैं ने कहा क्या जाने आप अपनी पत्रियां बरबस मुझ से छोन लेंगे॥ ३२ । जिस किसी के पास आप अपने देवों को पावें उसे जीता मत छोड़िये और हमारे भाइयों के आगे देख लीजिये कि आप का मेरे पास क्या क्या है और अपना लौजिये क्योंकि यअकब न जानता था कि राखिस्त ने उन्हें चुराया था॥ ३३। और लाबन यअकूब के तंबू में गया और लियाह के तंबू में और दोनो दासियों के तंबू में परन्तु न पाया तब बुह लियाह के तंबू से बाहर जाके राखिल के तंबू में गया ॥ ३४। और राखिल मूर्तिन को लेकर ऊंट की मामग्री में रखके उन कहा