पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/७४१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

४ पब्ने] को २ पुस्तक । ७३५ बोली कि तेरी दासी के घर में एक हांडी तेल से अधिक कुछ नहीं ॥ ३। तब उम् ने कहा कि बाहर जाके अपने सब परोसियों से कंक पात्र मंगनी ला और वे घोडे न होव ॥ ।। और अपने घर में जाके अपने और अपने बेटे पर दार बन्द कर और उन मव पात्रों में उंडल और जो जो भर जाय उसे अलग रख ॥ ५। सो वह उम के पास से गई और अपने पर और अपने बेटों पर दार मंद लिया वे उस के पास लाने जाते ये और वह उंडेलती थी। ६। और ऐसा हुआ कि जब वे पात्र भर गये तो उम ने अपने बेटे से कहा कि एक और पात्र ला वुह वाला पार पात्र तो नहौं तब तेल थम गया। और उस ने अाके ईश्वर के जन से कहा तब वुह बोला जा तेल बेंच और धनिक को दे और बचे हुए से त और तेरे सन्तान जौवें ॥ ८। और एक दिन ऐसा संयाग हुआ कि इलीमाअ सूनेम को गया वहां एक धनवती स्त्री थी उस ने उसे पकड़ा कि रोटी खाय से ऐसा हुआ कि जब उस का जाना उधर होता था तब बुह वहां जाके रोटी खाता था। ६ । फिर उस ने अपने पति से कहा कि देख मैं देखती हूं कि यह ईश्वर का पवित्र जन है जो नित्य हमारे पास से जाता है। १० । सो हम उस के लिये एक छोटी सी कोठरी भीन पर बनावें और वहां उस के लिये बिछौना बिछावें और एक मंच लगावें और एक पीढ़ौ रक्खें और एक दौअट और जब बुह हम पास आया करे तव वहीं टिके॥ ११ । से। एक दिन ऐसा हुआ कि वह वहां गया और उस कोठरी में टिका और सोया॥ १२ । तब उस ने अपने सेवक जैहाजी को कहा कि इस सूनेमो को युला उस ने उसे बुलाया तो बुह उस के आगे श्रा खड़ो हुई॥ १३। फिर उस ने अपने सेवक से कहा कि तू उसे कह ने जा हमारे लिये यह सब चिन्ता किई तो तेरे लिये क्या किया जाय तू चाहती है कि राजा अथवा सेना के प्रधान से तेरे विषय में कहा जाय बुह बोली कि में अपने ही लोगों में रहती हूं ॥ १४ । फिर उस ने कहा कि इम के लिये क्या किया जाय तब जहाजी बोला कि निश्चय यह निर्देश है और उस का पति हट् ॥ १५ । नव वुह बोला कि उसे बुला और उस ने उसे बुलाया तब बुह द्वार पर खड़ी हुई॥ १६ । बुद्द बोला इसो समय से पूरे दिन पर तू एक बेटा गोद में कित