पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/७४६

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७४० राजावली कि देख मेरे खामी ने इस अरामी नअमान को छोड़ दिया और जो कुछ बुह लाया था उस के हाथ से ग्रहण न किया परन्तु परमेश्वर के जीवन से मैं तो उस के पीछे दौड़ जाऊंगा और उसमे कुछ लेऊंगा । २१ । से जैहाजी नअमान के पीछे गया और नअमाम ने जो देखा कि पोछे दौड़ा आता है तो वुह उस की भेंट के लिये रथ पर से उतरा और बोला कि सब कुशल । २२। उस ने कहा कि मच कुशल मेरे स्वामी ने यह कह के मझे भेजा है कि देख भविष्यद्वक्ता के सन्तान में से दो तरुण पुरुष इफ- रायम पहाड़ से आये हैं सो अनुग्रह करके उन्हें एक तोड़ा चांदी और दो जोड़े बस्त्र दीजिये ॥ २३ । तब नअमान ने कहा कि प्रसन्न हो और दो नोड़े ले और उस ने उसे मकेत करके दो तोड़े चांदी दो थैलियों में दो जोड़े बस्त्र सहित बांधे और अपने दो सेवकों पर धरा और वे उठा के उस के श्रागे अागे गये। २४॥ और उस ने एकान्त में आके उन के हाथ से उन्हें ले लिया और घर में रख के उन पुरुषों को बिदा किया सेो वे चले गये। २५ । परन्तु वुह जाके अपने स्वामी के सामने खड़ा हुअा नव इलीसा ने उसे कहा कि जैहाजी कहां से बुह बोला कि नेरा सेवक तो इधर उधर नहीं गया था ॥ २६ । फिर उस ने उसे कहा कि मेरा मन न गया था जब वह जन अपने रथ पर से उतर के नेरी भेंट को फिरा क्या यह रोकड़ और बस्त्र और जलपाई और दाख की बारी और भेड़ और बैल और दास और दासियां लेने का समय है। नमान का कोढ़ तुझे और तेरे बंश को सदा लगा रहेगा तब वुह उस के श्रागे से पाला कौ नाई कोढ़ी चला गया। २७। इस लिये ६ बरवां पढ़ र भविष्यवहां के पुत्रों ने इलौसा से कहा कि अब देखिये यह स्थान जहां हम तेरे संग बसने हैं हमारे लिये अति सकेत है ॥ २॥ अब अनुग्रह कर के यरदन को चलिये और वहां से हर एक जन एक एक बल्ला लावे और वहां एक बसगित बनावें बुह बोला कि जाओ॥ ३ । तव एक ने कहा कि मान लीजिये और अपने सेवकों के साथ चलिये उस ने उत्तर दिया कि मैं जाऊंगा। ४। सेा वुह उन के साथ साथ गया और