पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/७५

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३२ पर्ब] की पुस्तक। ६५ ४७। और लाबन ने उस का नाम साक्षी का ढेर रक्खा परन्तु यअकब ने जम का नाम जिलिद रकवा ।। १८। और लाबन बोला कि यह हर आज के दिन मुझ में और तुझ में माक्षी है इस लिये उस का नाम जिलिद ॥ ४६ । और किस का गुन्भट हुआ क्योंकि उस ने कहा कि जब हम आपुम से अलग होवें तो परमेश्वर मेरे तेरे मध्य में चौकसी करे॥ ५० । जो तू मेरी बेरियों को दुख दे वे अथवा उन से अधिक स्त्रियां करे देख हमारे साथ कोई दूसरा नहीं ईश्वर मेरे और मेरे मध्य में साक्षी है। ५१ । और लावन ने यअकब से कहा देख यह देर और खभा जो मैं ने अपने और आपके मध्य में रक्खा है॥ ५२। यही ढेर और खंभा साक्षी है कि मैं इस देर से पार तुझे और तू इस ढेर और इस खंभे से पार मुझे दुख देने को न आवेगा॥ ५३। अबिर हाम का ईश्वर और नहर का ईश्वर और उन के पिता का ईश्वर हमारे मध्य में विचार करे और यअकब ने अपने पिता इजहाक के भय की किरिया खाई॥ ५४ । तब यत्रकब ने उस पहाड़ पर बलि चढ़ाया और अपने भाईयों को रोटी खाने को बुलाया और उन्हों ने रोटी खाई और सारी रात पहाड़ पर रहे ॥ ५५ । और भार को तड़के लाबन उठा और अपने बेटों और बेटियों को चूमा और उन्हें आशीष दिया और लाबन विदा हुआ और अपने स्थान को फिरा॥ और यकूब ३२ बत्तीसवां पर्च। पर य अब अपने मार्ग चला गया और ईथर के दूत उसे आ मिले ॥ २। और अब ने उन्हें देख के कहा कि यह ईश्वर की सेना है और उस ने उस स्थान का नाम दो सेना रक्खा ॥ ३ ॥ अपने अागे अटूम के देश और शीर की भूमि में अपने भाई एसो पास दूतों को भेजा। और यह कहिके उन्हें याज्ञा किई कि मेरे प्रभु एमा को यो कहियो कि आप का दाम यअकब यों कहता है कि मैं साबन कने टिका और अब लो वहीं रहा ॥५ । और मेरे बैल और गदहे और भंड और दाम और दासियां हैं और मैं ने अपने प्रभु भेजा है जिसने मैं श्राप की दृष्टि में अनुग्रह पाऊं ॥ ६ । और दूनों ने [A, B.S.] ४। उस ने का कहना 9