पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/७६१

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को २ पुस्तक। ०५५ अपने पास बुला के उन से बाचा बांधी और परमेश्वर के मन्दिर में उन से किरिया लिई और राजा के बेटे को उन्हें दिखाया ॥ ५। और उस ने यह कह के उन्हें आज्ञा किई कि तुम यह काम करो कि तुम्हारा नौसरा भाग जो बिश्राम में भौतर जाता है राजा के भवन का रक्षक होवे । ६। और तीसरा भाग मूर के फाटक पर रहे और तीसरे फाटक पर पहरुओं के पौके इस रीति से भवन की रक्षा करो और रोको। ७। और तुम सभा में से दो जथा जो विश्राम में निकलती हैं राजा के प्राप्त पाम होके परमेपर के मन्दिर की रखवाली करें। ८। और राजा को चारों और रहो और हर एक जन शमन हाथ में लिये रहे और जा बाडे के भीतर अावे से मारा जाय और बाहर भौतर आते जाने राजा के माथ रहो। ह। तब जैसा यहयदः याजक में समस्त प्राज्ञा किई थी शानपनियों ने वैमा हो किया और उन में से हर एक ने अपने अपने जनों कोजो बिनाम में बाहर भीतर आने जाने पर थे लिया यहूयदः याजक २.। तब वाजक ने राजा दाऊद को बरहिया और ढालें जो परमेश्वर के मन्दिर में थौं शतपतियों को दिई । ११ । और पहरू अपने अपने शस्त्र हाथ में लेके हर एक जन मन्दिर के दाहिने कोने से लेके काय कोने लो और बेदी की और मन्दिर की और राजा को चारों ओर खड़े हुए ॥ १२ : फिर वुह राज पुत्र को निकाल लाया और उस पर मुकुर रख के उसे माती दिई और उसे राजा बनाया और अभिषेक किया और उन्हों ने तालियां बजाई और बोले कि राजा जीवे ॥ १३ । और जब अतलीयाह ने पहरुओं और लोगों का शब्द सुना तो वुह लोगों में परमेश्रर के मन्दिर में पहुंची। १४ । और क्या देखती है कि व्यवहार के समान राजा खंभे से लगा हुआ खड़ा है और अध्यक्ष और भरसिंगे के बजवैये राजा के लग खड़े हैं और देश के सारे लोग आनन्द में हैं और नरसिंगे फूंकते हैं तब अतलीयाह ने अपने कपड़े फाड़े और चिल्ला के बाली कि कुल छन । २५ । परन्तु यहयदः याजक ने शतपतियों को और सेना के अध्यक्षों को प्राज्ञा किई और कहा कि उसे बाड़ा से बाहर करो और जो उस का पीछा करे उसे तलवार से मार डाला क्योंकि याजक ने कहा था कि वह परमेश्वर के मन्दिर में मारी न जाय ॥ १६ । पास आय