पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/८७

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३७ पर्च] ७७ पास प्राया। की पुस्तक। से कहा क्या तेरे भाई सिकम में नहीं चराते आ मैं तुझे उन के पास भेजू और उम ने उसे कहा कि मैं यहीं हूं ॥ ९४ । फिर उस ने उसे कहा कि जा अपने भाइयों और झंडों की कुशलता देख और मुझ संदेश ला सा उस ने उसे हवरून की तराई से भेजा और वुह सिकम में १५ । तब किमी जन ने उसे पाया और उसे खेत में धमते देखा तब उस पुरुष ने उससे पूछा कि तू क्या ढूंढ़ता है ॥ १६ । धुह बोला मैं अपने भाइयों को ढूंढता है मुझे बताइये कि वे कहाँ चराते हैं ॥ १७॥ और बुह पुरुष बोना वे यहां से चले गये क्योंकि मैं ने उन्हें यह कहते सुना कि आओ दूतैन को जावें तब यमुफ अपने भाइयों के पीछे चला और उन्हें दून में पाया ॥ १८। और ज्यांहीं उन्हों ने उसे दूर से देखा तो अपने पास आने से पहिले उस के मार डालने को जुगत किई । १६ । और वे ॥ १६। और वे आपस में बोले देखो बुह खादी आता है। २० । सो आयो अब हम उसे मार डालें और किसी कएं में डाल देवें और कहें कि कोई बन्य पशु ने उसे भक्ष किया और देखेंगे कि उस के वशं का क्या होगा॥ २१। तब रूबिन ने सनके उसे उन के हाथों से छुड़ाया और बोला कि हम उसे मार न डालें ॥ २२ । और रूबिन ने उन्हें कहा कि लोहू मत बहाओ परन्तु उसे बन के इस कएं में डाल देवो और उस पर हाथ न डरलो जिसने बुह उसे उन के हाथों से कुड़ाके उस के पिता पास फिर पहुंचावे ॥ २३ । चौर यों हुआ कि जब यमुफ अपने भाइयों पास आया तो उन्हों ने उस का बहुरंगी वस्त्र उसो उतार लिया ॥ २४ । और उन्हों ने उसे लेके कूर में डाल दिया और चुह को अंधा था उम में कुछ पानी न था॥ २५ । तब वे रोटी खाने बैठे और अपनी आंख उठाई और क्या देखते हैं कि इसमअएलियों का एक जथा जिलिश्रद से सुगंध द्रव्य और बलसाम और मुर जटों पर लादे हुए मिस्र को उतर जाते हैं ॥ २६ । और यहूदाह ने अपने भाइयों से कहा कि अपने भाई को मारके उस का लोहू छिपाने से क्या लाभ होगा॥ २७ । आओ उसे दूसमअपनियों के हाथ बेचें और उम पर अपने हाथ न डालें क्योंकि वह हमारा भाई और हमारा मांस है और उस के भाइयों ने मान लिया। २८ । उस समय मिदयानी