पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/९९

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५२ पर्च को पुस्तक। १६। जा सच्चे हे तो एक को अपने भाइयों में से बदौगह में बंद रहने देगा और तुम अकाल के लिये अपने घर में अन्न ले जाना। २०॥ परन्तु अपने छोटे भाई को मुझ पास लाओ सेा तुम्हारी बातें यों ठहर जायंगी और तुम न मरोगे सो उन्हों ने ऐसा ही किया ॥ २१ । तव उन्हों ने अापुस में कहा कि हम निश्चय उस बात के विषय में दोषी हैं कि जब हमारे भाई ने बिनती किई और हम ने उस के प्राण के कष्ट को देखा तो उम की न सनी इस लिये यह विपत्ति हम पर पड़ी है ॥२२। तब रूबिन ने उत्तर में उन्हें कहा क्या मैं ने तुम्हें नहीं कहा कि इस लड़के के विरुद्ध पाप न करो और तुम ने न सुना इस लिये देखो उस के लोह का यही पलटा है॥ २३ । और वे न जानते थे कि युसुफ ममुझता है क्योंकि उन के मध्य में एक दोभाषिया था । २४ । तब वुह उन में से अलग गया और रोया और फिर उन पास आया और उन से बात चौत किई और उन में से समजन को लेके उन की आखों के आगे बांधा। २५ । नब यसफ ने उन के बारों को अन्न से भरने की और हर जन का रोकड़ उम के बारे में फेरने की और मार्ग के लिये उन्ह भोजन देने की आज्ञा किई और उस ने उन्हें ऐमा ही किया ॥ २६ । और वे अपने गदहों पर अन्न लादके चल निकले। २७। और जब उन में से एक ने टिकान में अपने गदहे कर दाना घास देने को अपना बारा खाला तो उम ने अपना रोक ड़ देखा क्योंकि बुह बोरे के मुंह पर था । २८। नब उस ने अपने भाइयों से कहा कि मेरा रोकड़ फेरा गया है और देखा कि वह मेरे बारे में है सो उन के जी में जौ न रहा और वे डरके एक टूसरे को कहने लगे कि ईश्वर ने हम से यह क्या किया ॥ २६ । और चे कनशान देश में अपने पिता यशकब पास पहुंचे और सब जो उन पर बीता था उस के आगे दोहराया ॥ ३० । जो जन उस देश का स्वामी है सो हम से कठोरता से बोला और हमें देश का भेदिया ठहराया ॥ ३१ ॥ और हम ने उसे कहा कि हम तो सच्चे मनुष्य हैं हम भेदिय नहीं हैं ॥ ३२ हम बारह भाई एक पिता के बेटे हैं एक नहीं है और सब से कोटा अाज अपने पिता के पाम कनान देश में है। ३३ । तब उस जन ने अर्थात [ [A. B. S.1 12