पृष्ठ:धर्म के नाम पर.djvu/१०३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
(१०३)

किया कि राधा वास्तव में श्री कृष्ण की पत्नी भी न थी, वह पर स्त्री थी, इसके सिवा श्री कृष्ण के अपनी पत्नियां भी थीं। महाभारत में हमें इसका कुछ भी उदाहरण नहीं मिलता। परन्तु हिन्दुओं की मनोवृत्तियां इतनी गन्दी हो गई हैं कि वे कृष्ण के व्यभिचार की लीलाऐं बड़े मनोयोग से अभी अभिनय करते हैं।

कुछ दिन पूर्व कलकत्ते के गोबिन्द भवन नामक मारवाड़ियों के एक भक्ति आश्रम के एक पहुँचे हुए भक्त हीरालाल के पाप का घड़ा बीच बाज़ार फूटा था। और यह प्रमाणित होगया था कि इस नराधम ने सैकड़ो ही भले घर की बहू बेटियों से उस मन्दिर में व्यभिचार किया है। यह उस जाति की बेग़ैरती का नमूना था कि उस भयानक अपमान को वे लोग चुपचाप पी गए। पर इस व्यभिचार की जड़ में वह कुत्सित भावना है जो धर्म व्यभिचार सम्बन्धी साहित्य के मनन से स्त्री पुरुषों के मन पर होती है। यह व्यक्ति अपने को कृष्ण और स्त्रियों को गोपी कह कर उनकी वृत्तियों को अवरार पाते ही चलित करता था और उन्हें पतित करता था। स्त्रियां स्वभाव ही से चलित चित्त तो होती ही हैं। शीघ्र ही बहक जातीं। फिर इस पापिष्ट ने कुटनियां भी बहुत सी लगा रखीं थीं। जब चांद के मारवाड़ी अंक का हम ने सम्पादन किया तो इस धर्म सांड के चित्र को प्राप्त करने में हमें बड़ी दिक्कत का सामना करना पड़ा—अन्त में एक एक उच्च कुल की महिला के गले में पड़े हुए लाकेट से वह चित्र हमें बड़ी कठिनाई से मिला—और उस महिला ने उसका नाम न प्रकाशित कर