पृष्ठ:धर्म के नाम पर.djvu/१०५

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चौक में जिसका जी हो आकर देखले। प्रायः युवतियां बेधड़क खोंमचे वाले की दुकानों के सामने स्टूलों पर बैठ कर पत्ते चाटा करती हैं। या 'हर माल साढ़े तीन आने' की दुकानों पर घन्टों खड़ी सौदा पटाया करती हैं। इन में बहुत सी उच्च कुल की लड़- कियां होती हैं। अस्तु! वह युवक यह चालाकी करता कि जिस युवती को वह पसन्द करता उसके जूते में ५) का नोट रख देता जब वह स्वीकार हो जाता तो सौदा पट जाता—नहीं तो अकस्मात् की बात कह दी जाती।

एक महा पुरुष अपना नया तजुर्बा सुनाने लगे—कि मैं तो यमुना जी के रास्ते पर जहां.. .बगीची है जा डटता हूँ। वहां से नित्य ही हजारों स्त्रियां गुजरती हैं। जिसे पसन्द किया ५) का नोट गिरा दिया, यदि उसने उठा कर चुप चाप रख लिया तो संकेत करके ज़रा अलग किया और सब बातें तै करलीं—नहीं तो अपना नोट उठाया और दूसरा शिकार देखा।

मन्दिरों से स्त्रियों का उड़ाया जाना, उन पर बलात्कार करना नई बात नहीं। नित्य के काम हैं। और इनके मूल में भी वही धर्म व्यभिचार की छाप है, जो ऐसे कर्मों की ओर विचार करने को मनुष्य को खींचता है।