पृष्ठ:धर्म के नाम पर.djvu/१२९

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सर हरीसिंह गौड़ के सहवास बिल पर अब तक बड़ी भारी दिलचस्पी ली जाती रही है। इस क़ानून के अनुसार १६ वर्ष से कम आयु की विवाहिता पत्नी से भी सहवास न कर सकेगा। यदि ऋतुमती होने के बाद ही कम उम्र में लड़कियों के साथ सम्भोग किया जायगा तो उनकी सन्तान अवश्य ही कमजोर होंगी, पर सनातनधर्मी ब्राह्मणों को कमज़ोर सन्तान उत्पन्न करने से कुछ हानि नहीं। उनकी सन्तान तो जन्मश्रेष्ठ ही ठहरीं इस लिये वे ऋतुकाल से पूर्व ही किसी सद्‌वंश की कन्या का पाणिग्रहण कर अपना और दस पूर्वजों तथा दस आगामी वंशजों का इस प्रकार इक्कीस पीढ़ी का उद्धार कर डालना चाहते हैं।

पाराशर स्मृति के सातवें अध्याय में लिखा है कि लड़की के जो माता पिता या बड़े भाई बारह साल की आयु से प्रथम उसका विवाह नहीं कर देते वे नर्क को जाते हैं। जो ब्राह्मण इससे बड़ी आयु की कन्या से विवाह करे उसे जाति से बाहर निकाल देना चाहिये और इस काम के लिये उसे यह प्रायश्चित करना चाहिये कि वह तीन वर्ष तक भीख मांग कर जीवन निर्वाह करे।

विचारने की बात तो यह है कि मर्द ४० या ५० वर्ष की आयु होने पर भी १०|१२ साल की लड़की से शादी कर लेता है पर शास्त्रों को इस में एतराज़ नहीं। केवल लड़कियों का विवाह ऋतुमती होने से पूर्व हो जाना चाहिये और यदि उनका पति मर जाय तो उन्हें जीवन भर विधवा बन कर बैठा रहना चाहिए।

ये पतित हिन्दू इस कल्पित नर्क से भय खाकर अपनी