पृष्ठ:धर्म के नाम पर.djvu/१३

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तर्क और विवेक के चक्र व्यूह में बुद्धि को घुमाया। इसमें सब से अधिक चमत्कार योगशास्त्र ने प्रकट किया। योग के अद्भुत और अव्यवहारिक चमत्कारों पर आज भी पृथ्वी के मनुष्य विश्वासी हैं। एक हद तक योग भी उच कोटि का धर्म बन गया। जो कोई भी योगी हो सकता है, उसके लिये यह निर्विवाद बात है कि पूर्णतया धर्मात्मा और ईश्वर भक्त है।

स्मृतियां सूत्र ग्रन्थों के आधार पर बनी। धर्मसूत्र और गृहसूत्र बनते ही गये, जब तक यज्ञों के प्रपंच बढ़ते गये। पीछे तो इन स्मृतियों ने अनगिनत जातियाँ, अनगिनत आचार, अनगिनत लोकाचार मनुष्य समाज में उत्पन्न कर दिये।

पुराणों ने अन्तिम प्रभाव पैदा किया और भिन्न भिन्न प्रकार के महात्म्य, श्रद्धा पैदा करने वाली कहानियाँ, नये से नये ढकोसले और वे सिर पैर की बातें धर्म सम्पुट की भाँति उनमें भर दीं। लोग अन्धविश्वास और अज्ञान के पूर्ण वशीभूत होगये।

इन सभी धर्म ग्रन्थों में कुछ न था यह मेरा कहना नहीं। पुराणों से इतिहास की अप्रतिम सामग्री आज भी हमें उपलब्ध हो सकती है। तर्क, मीमांसा, योग और सांख्य मे बहुत बुद्धि गम्य बातें हैं। परन्तु यदि कोई वस्तु नहीं है तो धर्म। इन सभी धर्म ग्रन्थ कहाने वाली पुस्तकों ने यदि किसी विषय में हमें अन्धा और गुमराह बनाया है तो केवल धर्म ने।

तब धर्म क्या चीज़ है? जैसा कि हम कह चुके हैं—भङ्गी का धर्म पाखाना साफ करना, वेश्या का कसब कमाना और विधवा