पृष्ठ:धर्म के नाम पर.djvu/१३२

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शारदा विवाह बिल के विरोध में कुम्भ कोकनम के स्वामीङ्गल मठ के जगतगुरु शंकराचार्य ने घोषणा की थी कि 'यह बिल हिन्दू धर्म के उन पवित्र सिद्धान्तों के सर्वथा प्रतिकूल है। जिन्हें सनातनी ब्राह्मण बहुत प्राचीन काल से मानते चले आए हैं। पवित्र सिद्धान्तों में इस तरह का हस्ताक्षेप हम किसी कारण से भी सहन न कर सकैंगे।'

अब यद्यपि सती की प्रथा क़ानूनन उठादी गई है पर अदालतों के सामने हर साल गैरक़ानूनी सती का एक न एक मुकदमा आता ही रहता है। प्रायः बहुत सी विधवायें जीवन के कष्टों से ऊब कर वस्त्रों पर मिट्टी का तेल डालकर जल मरती हैं ख़ासकर बंगाली अख़बार वाले उन सबको सती का रूप देते हैं। और ख़ूब रंगकर उनका वर्णन छापा करते हैं।

कुछ दिन पूर्व बनारस में अखिल भारतवर्षीय ब्राह्मण कानफ्रेन्स हुई थी जिसमें भारत के सब भागों के तीन हज़ार शास्त्री एकत्रित हुए थे उसमें गहन संस्कृत भाषा में सत्रह प्रस्ताव पास हुए जिनमें एक यह भी था कि लड़कियों का विवाह आठ साल की आयु में कर दिया जाय। अधिक से अधिक नौ या दस साल तक अर्थात् ऋतुमती होने से पूर्व तक।

पर्दा हिन्दू समाज पर एक अभिशाप है। जिसे दूर होने में अभी न जाने कितनी देर है। हमने स्त्रियों को सब तरह से असहाय कर रखा है।