पृष्ठ:धर्म के नाम पर.djvu/१४१

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७ करोड़ मुसलमान और १० लाख अंग्रेज़ निकाल दिये जायँ तो भी ८॥ करोड़ हिन्दू बच रहते हैं।

इसके सिवा गत १० वर्षों में ३२ लाख जीते पशु काट जाने के लिये पानी के रास्ते और १६ लाख से ऊपर खुश्की के रास्ते ईरान तिब्बत आदि को मांस के लिये भेजे गये हैं।

यह दया धर्म वाले हिन्दुओं के धर्म का नमूना है। जो लाखों रुपयों की सम्पत्ति रखने पर भी गायें पालना आवश्यक नहीं समझते।

पशुओं का घर में वही स्थान होना चाहिये जो घर में बच्चो का होता है। पशु पालना दया के ऊपर निर्भर नहीं प्रेम के ऊपर रहना चाहिये। परन्तु हमारी पशु दया की रूढ़ि है, हम में त्याग नहीं।

अब हम छोटी छोटी कुछ कुरीतियों का दिग्दर्शन करके इस अध्याय की समाप्ती करेंगे।

संस्कारों को ही लीजिये, उपनयन, कर्णवेध, मुण्डन, आदि सर्वत्र ही कुरीतियों का दौर दौरा है? एक नाटक सा करके इन संस्कारों की रस्में पूरी की जाती हैं।

ग़मी होने पर बिरादरी भोज एक विचित्र और घृणास्पद बात है। घर वालों के आँसू बह रहे हैं और पुरोहित और बिरादरी तर माल उड़ा रहे हैं। पुरोहित की बन आती है, मृतात्मा की सद्‌गति के बहाने गोदान, शैयादान, न जाने क्या क्या दान