पृष्ठ:धर्म के नाम पर.djvu/१६८

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हम सुकरात, मसीह, कृष्ण, दयानन्द और ऐसे ही हज़ारों लाखों मनुष्यों को इसी क्रान्ति की भेंट होते देखते हैं। जिन्होंने मिथ्या विश्वासों के विपरीत आवाज़ उठाई थी, जिनके कारण समाज निस्तेज़ और प्रभाशून्य होगया था। तत्कालीन सत्ताधारियों ने इन महात्माओं को खूब कष्ट दिया। मसीह को अपराधी के कटेहरे में खड़ा कर, एक पुरुष ने गम्भीरता पूर्वक उसे अपराधी कहकर सूली पर चढ़ा दिया। महा तत्वदर्शी सुकरात को सामने खड़ा कर एक विद्वान् विचारक ने उसे विष पीकर मर जाने की आज्ञा दे दी थी। आज महात्मा गांधी अपना पवित्र और बहुमूल्य जीवन जेल की कलुषित दीवारों में व्यतीत करते हैं। परन्तु ईसा की मूर्ति आधे संसार के राज मुकटों के लिये बन्दनीय है।

अन्ततः हम इस परिणाम पर पहुँचते हैं कि सत्य, न्याय, और ईश्वरीय नियमों का पालन करने के लिये हमें निरन्तर क्रान्ति करना चाहिए। और कभी अपने व्यक्ति गत लाभ हानि को इससे सम्बन्धित नहीं होने देना चाहिये।

यदि ऐसा किया जायगा तो मनुष्य जाति का सच्चा धर्म मनुष्य पर सौभाग्य और सुख की वर्षा करेगा और सारे संसार के मनुष्य परस्पर मिलकर सच्चा भ्रातृ भाव प्राप्त करेंगे।

 

इति