पृष्ठ:धर्म के नाम पर.djvu/२५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
( २५ )

मैं फिर कहता हूँ देश के व्यापारी जो अपनी भयानक मशीनों और रहस्यपूर्ण बही खातों तथा पाप पूर्ण सट्टों और जुआ चोरियों के द्वारा करोड़ों रुपये कमाते और उन में से लाखों दान करते हैं; वे कभी भी धर्म के अधिकारी नही, क्षमा के योग्य भी नहीं। मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि ये व्यापारी देश के पुत्र नहीं, देश के साथ उन की कोई सहानुभूति भी नहीं। देश के दुःख के साथ उन का दुःख और देश के सुख के साथ उन का सुख भी नहीं। वे विदेशी सरकार की भांति, तस्मे के लिये भैंस हलाल करने वाले निर्दयी स्वार्थी हैं। हाल ही में रूई, घी, अन्न, सस्ते होने पर ये लोग सिर पीटने लगे और इन के पेट फट गये। ये लोग महंगाई बने रखने को सभी सद्, असद् उपाय काम में लाते रहते हैं। आज देश सरकार की स्वार्थान्धता को भी नहीं सहन करता तो इन पतली दाल खाने वालों को योंही कैसे छोड़ देगा। ये घरेलू चूहे हैं जो स्वयं क्षुद्र होने पर भी सिर्फ कुतर कुतर कर अनगिनत हानि कर रहे हैं।

ये श्रीमन्त व्यापारी केवल बड़े बड़े दान करके देशके भाई या धर्मात्मा नहीं बन सकते। इन के लाखों रुपये के ये दान पाप की कमाई का हिस्सा है। जो सट्टा, सूद, हरामीपन और ग़रीबों के पसीने से निचोड़ी हुई है। प्राचीन रजवाड़ों में राजा लोग डाकू लोगों से लूट का भाग लिया करते थे और वह रकम पाकर उन की तरफ से आंख मीच लिया करते थे। ऐसे दोनों को ग्रहण करने वाले भी उसी श्रेणी के हैं। ऐसे धनको