पृष्ठ:धर्म के नाम पर.djvu/४

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इस लिये जिन मेरे भाइयों का दिल इस पुस्तक को पढ़कर दुखे; उनके चरणों में सीस नवाकर मैं प्रथम ही क्षमा मांगे लेता हूँ। क्योंकि इन पाखण्डों के बीच में जीवित रहकर मुझे उनसे कहीं अति अधिक दुःख हो रहा है।

पुस्तक बहुत जल्दी में केवल १ सप्ताह में लिखी गई है, क्योंकि उत्साही प्रकाशक महाशय इसे महात्मा गांधी के जगत प्रसिद्ध उपवास के पवित्र सप्ताह में ही प्रकाशित करने के इच्छुक थे। इस लिये इसमें जो भी त्रुटियाँ रह गई हों, उनके लिये भी सहृदय पाठक क्षमा करे।

 
दिल्ली
श्रीचतुरसेन वैद्य
२१|५|३३