पृष्ठ:धर्म के नाम पर.djvu/४५

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भावी और प्राकृतिक है। अगर कोई पाप न करे तो भी उसे मरना पड़ेगा। वह यह भी कहता था कि मनुष्य स्वयं ही अपने पाप पुण्य का जिम्मेदार है उसका पुत्र नहीं।

उसका यह कहना अपराध ठहराया गया और उसे उसका सर्वस्व छीन कर देश निकाला दे दिया गया। परन्तु लोगों ने इस प्रश्न पर विचार करना शुरू कर दिया कि मृत्यु इस संसार में आदम के पतन से पहिले थी या नहीं। इसी बीच में प्रसिद्ध साधु अगस्टाइन उत्पन्न हुआ और उसके धर्म और विज्ञान में ऐसा विरोध उत्पन्न किया कि लगभग १५०० वर्ष तक धार्मिक लोग उसके वचनों पर श्रद्धा करते रहे। अब ईसाई पादरियों की धन समृद्धि बहुत बढ़ गई थी। क्योंकि राजकीय आय में से एक बंधी रकम धर्म कार्यों के लिये मिलती रही थी।

अब ईसाइयों के ३ बड़े २ केन्द्र थे—रोम, सिकन्दरिया और कुस्तुन्तुनिया। तीनों ही केन्द्रों के विषय अपना सर्व श्रेष्ठ पद प्रमाणित करते थे। इस समय ईसाइयों के स्वर्ग की खूब चर्चा थी। वह स्वर्ग प्राचीन ओलम्वियन पहाड़ था, वहाँ एक श्वेत सिंहासन पर ईश्वर बैठता था और उसकी दाहिनी ओर उसका पुत्र मसीह और उसके बाद खूब सजीधजी कुमारी मरियम। बाईं ओर पवित्रात्माएं होती थीं। चारों ओर बहुत से फरिश्ते बीणा लिये बैठते थे। सामने असंख्य मेज रहती थीं जिनपर अच्छी आत्माएँ सदा मौज उड़ाया करती थी।

इस वर्णन में सैकड़ों वर्ष तक किसी को सन्देह न हुआ।