पृष्ठ:धर्म के नाम पर.djvu/४९

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संसर्ग से था बड़ा प्रभाव पड़ा। पुराणों में जो असंख्य बुद्धि विपरीत बातें हमें देखने को मिलती हैं वे सब इसी की बदौलत गढ़ी गई हैं। और योग—तन्त्र मंत्र, जादू टोने, टोटके की बदौलत आज भी लाखों लोग भेट भर रहे हैं। दो चार उदाहरण देकर हम इस अध्याय को समाप्त करेंगे।

एक बार मैं रुग्ण हो गया था। रक्त की बहुत कमी हो गई थी और अनिन्द्र रोग भी था। उन्हीं दिनों एक योगीराज दिल्ली आए हुए थे। उनकी बड़ी धूम थी। वे सूर्य पर बदली ला देते हैं, अदृश्य हो जाते हैं, और देखते देखते बालरूप धारण कर लेते हैं तथा और भी अद्भुत क्रियाऐं जानते हैं, यह बात अखबारों तक में छप गई थी। मेरे एक मित्र उन्हें मेरे पास पकड़ लाए—उनका कहना था कि योगिराज दृष्टिमात्र से ही उन्हें आरोग्य कर देंगे। नगर के दो प्रतिष्ठित बैरिस्टर और एक डाक्टर साहेब सदैव ही योगिराज के साथ घूमते थे। योगिराज को देखते ही मैं तुरन्त पहचान गया। वह महाविद्यालय ज्वालापुर का एक चलता पुर्जा विद्यार्थी था, परन्तु मैंने ऐसा भाव दिखाया मानों मैंने उन्हें बिल्कुल नहीं पहिचाना। वे बड़ी गम्भीरता से बैठ गये। मूछें मुण्डी हुई, घूघर वाले बाल लहराते हुए, मांग निकली हुई। बढ़िया तंज़ेब का कुरता और पीतल की पच्चीकारी के काम की खड़ाऊं पहिने, रेशमी धोती लपेटे हुए पान कचरते हुए कुर्सी पर डट गये।

मैंने कहा—महाराज, कहाँ से पधारना हुआ।[श्रेणी:धर्म के नाम पर]]