पृष्ठ:धर्म के नाम पर.djvu/६१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
(६१)

उस पर प्रातः काल से लेकर संध्या तक मार पड़ी—यहाँ तक कि उसकी चमड़ी के धुर्रे उड़ गये, शरीर ऐंठकर कमान हो गया और जगह जगह से ऐसा क्षत विक्षत हो गया कि हत्यारों को उसके जीते रहने पर आश्चर्य होता था। पर वह अन्तिम सांस तक कहती गई कि 'मैं ईसाई हूँ।' अन्त में उसे हाथ फैलाकर एक खंबे से बांध दिया और पशु छोड़ दिये कि फाड़ डालें, पर पशु उसे सूंधकर चले गये। कदाचित् उन्हे दया आ गई हो। तब उसे अगले दिन के लिये रख छोड़ा। दूसरे दिन जब वह फिर मरने के लिये बुलाई गई तो आनन्द से कदम बढ़ाकर वध स्थान पर गई। आख़िर एक जाल में लपेट कर उसे सांड़ के आगे डाला गया और इस तरह उसका अन्त हुआ।

परपिटु एक २२ वर्ष की विवाहिता स्त्री थी। उसकी गोद में एक छोटा बच्चा था। जब उसे ईसाई होने के अपराध में बध की आज्ञा दी तो प्रथम उसका बालक छीनकर क्रूरता से मार डाला गया। फिर उसे बध स्थान पर ले चले। उसने निर्भय होकर मृत्यु का सामना किया। उसके वृद्ध पिता ने स्नेह वश उसे विचलित करना चाहा परन्तु उसने बड़ी वीरता पूर्वक कहा—'पिता, शान्त हो, यह धर्म युद्ध क्या पीछे हटने का समय है। आत्मा में बल आने दो—ईश्वर के लिये इसमें विघ्न मत करो।' इतना कह कर वह बध स्थान पर आ खड़ी हुई और पशुओं से फाड़ डाली गई।