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पांचवां अध्याय

हत्या

कुछ दिन पूर्व देशाटन करते हुए मुझे श्री वैधनाथ धाम जाने का अवसर प्राप्त हुआ। उस दिन विजया दशमी थी। मन्दिर में बहुत से बाहर के यात्री आए थे। हम लोग स्नान आदि से निवृत्त होकर पण्डे के साथ मन्दिर को चले। ज्योही हमने मन्दिर के प्राङ्गण में प्रवेश किया कि देखा, एक व्यक्ति कुछ विचित्र सी वस्तु केले के पत्ते में लपेटे बड़ी स्वच्छता से लिये जा रहा है। वह ब्राह्मण था और जनेऊ गले में डाला था। तिलक भी सारे अङ्ग पर लगा था। मेरे पास बालक था उसने पूंछा यह क्या चीज़ है? मैं स्वयं भी उसे कोई अद्भुत फल समझा—पर ज्योंही वह निकट होकर गुज़रा तो मैंने देखा कि वह किसी बकरे की दो टांगें थी।