पृष्ठ:धर्म के नाम पर.djvu/८३

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ऐसा प्रतीत होता है कि इस प्रकार की घृणास्पद हत्यायें लोगों को अप्रिय प्रतीत होने लगी थीं। और लोगो ने उनका विरोध करना शुरू कर दिया था। 'महाभारत में लिखा है' वेद में जो 'अज' से यज्ञ करने को लिखा है उसका अर्थ बीज है बकरा नहीं।

'गायें अवध्य हैं इन्हें न मारना चाहिये।'

"हिन्सा धर्म नहीं है।"

चार्वाक सम्प्रदाय वालों ने उपहास से कहा था—

'यदि पशु को मारने ही से स्वर्ग मिलता है तो यजमान अपने माता पिता को ही क्यों नहीं मारकर हवन कर देते।'

मत्स्यपुराण अध्याय १४३ में यज्ञ के विषय में एक मनोरंजक उपाख्यान है। "ऋषि पूछने लगे—स्वयंभुव मनु के समय त्रेतायुग के प्रारम्भ में यज्ञ का प्रचार कैसे हुआ?...

सूत जी ने कहा—वेद मन्त्रों का विनियोग यज्ञ कर्म में, करके इन्द्र ने यज्ञ का प्रचार किया ..जब सामगान होने लगा और पशुओं का आलंभन चलने लगा—तब महर्षि गणों ने उठ कर इन्द्र से पूंछा—तुम्हारी यज्ञ विधि क्या है? ..यह पशु हवन की विधि तो अनुचित है ..यह धर्म नहीं अधर्म है। तुम धान्य से यज्ञ करो।