पृष्ठ:धर्म के नाम पर.djvu/८५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
(८५)


महाभारत में (शान्तिपर्व अ॰ ३४०) में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि यज्ञों में पशुवध वैदिक काल से बहुत पीछे चला है।

श्रीमद्भागवत् में (४।२५।७।८ में) एक यज्ञ के विषय में लिखा है कि हे राजन्! तेरे यज्ञ में जो हज़ारों पशु मारे गये हैं तेरी उस क्रूरता का स्मरण करते हुए क्रोधित होकर तीक्ष्ण हथियारों से तुझे काटने को बैठे हैं

एक बार मुझे कालिका जी के मेले में कुछ मित्रों के साथ जाने का अवसर हुआ। एक ने कुछ मिठाई मन्दिर में चढ़ाई थी। वहां से वे प्रसाद लाकर जब बाँटने लगे तब दौने में से बकरे का एक कटा हुआ कान निकला। तब उन्होंने दौना फेंक अपनी राह ली।

सुअर मुर्गे का बलिदान हिन्दू समाज की नीच जातियों में होली दिवाली को अत्यन्त आवश्यक चीज़ समझी जाती रही है। देखा देखी उच्च जाति के हिन्दू भी यह काम करते हैं।

दया मानवीय स्वभाव का सब से भारी गुण है। मूक और असहाय पशु पक्षियों पर निर्दय होना मनुष्य के लिये सर्वाधिक कलङ्क की बात है। ज्यों २ सभ्यता बढ़ती जाती है मनुष्य की क्रूरता कम होनी चाहिये। शृङ्गार के लिये योरोप की स्त्रिये जिन सुन्दर पक्षियों के पर टोपी में रखती थीं उन की नसल का अन्त हो गया—वे सुन्दर पक्षी अब फ्रांस में हैं ही नहीं। लन्दन में एक व्यापारी ने १ वर्ष में ३२ लाख उड़ने वाले, ८० हज़ार