पृष्ठ:धर्म के नाम पर.djvu/८६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
(८६)

पानी के और ८० हज़ार अन्य पक्षियों का केवल परो के लिये वध करवाया था। विलायत के एक शहर से ३ दिन में चौबीस लाख लावा मार कर एक बार लन्दन भेजे गये थे।

जब तक मनुष्य के हृदय में पशुओं के प्रति प्रेम नहीं होता, मनुष्य का हृदय परिवर्तन न होगा और घृणास्पद हत्याएं बराबर ही होती रहेगी।

कुछ दिन पूर्व पूने के मराठी-पत्र केसरी में एक यज्ञ का हाल छपा था। जिसे किसी ब्राह्मण ढुंढ़िराज गणेश वापट दीक्षित सोमपा जी ने लिखा था। उसका वर्णन इस प्रकार है।

"गत फरवरी' मास में मैंने ओंध में अग्निष्टोम नामक सोम यज्ञ किया था। और उसमें पशु हनन करके उसके अंगों की आहुतियाँ दी थीं। उस पशु हनन के सम्बन्ध में वैदिक धर्म की आज्ञा न जानने वालों (?) ने बहुत कुछ लेख अख़बारों में लिखे थे।

ब्राह्मणादि त्रैवर्णियों के वर्णाश्रम विहित् कर्तव्यों में यज्ञ कर्म मुख्य है। यज्ञ में हवन मुख्य है। और हवन में अनेक देवताओं के उद्देश्य से मंत्र पठन पूर्वक विविध पदार्थों की आहुतियाँ दी जाती हैं। जेसै आज्य, चरु, पुरोडाश, सोमरस ये द्रव्य हैं। तथा अज, मेष आदि पशुओं के अवयवों का मांस भी है।

"भारतीय युद्ध के पश्चात् जैन और बौद्धों ने वैदिक धर्म पर बड़ाभारी हमला किया—जिससे वैदिक यज्ञ संस्था को बड़ा